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कार्य शुरू तक नहीं किया जा सका है।
सूत्रों ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा हर साल मात्र चार लाख रुपए की राशि इस संस्थान के कामकाज के लिए सहायता के रूप में उपलब्ध कराई जाती है। यह राशि इतनी अपर्याप्त है कि इससे संस्थान में शोधकार्य की व्यवस्था करना संभव नहीं है। इसके कारण यह संस्थान पिछले 42 वर्षों से गंभीर आर्थिक समस्या के अलावा अन्य कठिनाइयों से जूझ रहा है तथा यहाँ शोधकार्य भी प्राय: ठप्प हैं। राष्ट्रीय जनता दल' के संसदीय दल' के नेता
और वैशाली के सांसद डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह ने बताया कि केन्द्र-सरकार द्वारा स्वीकृत परियोजना के तहत बासीकुंड-ग्राम में स्थित शिलान्यास-स्मारक-स्थल पर भगवान् महावीर की चौदह फीट ऊँची एक आकर्षक और भव्य मूर्ति की स्थापना के अलावा पहुँच-पथ, सभाभवन, ध्यान-केन्द्र, साधु-आवासगृह आदि का निर्माण कराया जाएगा।
सूत्रों ने बताया कि वित्तीय संकट से उत्पन्न बदहाली तथा अन्य अव्यवस्थाओं के चलते देश के विभिन्न प्रदेशों से संस्थान में आने वाले छात्रों की संख्या नाममात्र की रह गई है। साथ ही विदेशों से छात्रों का आना पिछले कई वर्षों से बंद है। संस्थान के शिक्षकों के लिए आवासीय सुविधा, पेयजल, बिजली, यातायात, चिकित्सा और सुरक्षा समेत अन्य सुविधाओं का भी अभाव है। संस्थान में प्राध्यापक के कुल दस सृजित पदों में अधिकांश-पद रिक्त पड़े हैं। इसके अलावा संस्थान के प्रति छात्रों का घटते आकर्षण का मुख्य-कारण इसकी छात्रवृत्ति-राशि का कम होना है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग' द्वारा शोधछात्रों को 16 सौ से 22 सौ रुपए तक की मासिक छात्रवृत्ति दी जाती है, जबकि इस संस्थान के शोधछात्रों को यह छात्रवृत्ति मात्र तीन सौ रुपए मासिक दी जाती है।
सूत्रों ने बताया कि प्रारंभ में वैशाली शोध संस्थान' में शोध और पढ़ाई के लिए देश के अलावा वियतनाम, थाईलैंड, बर्मा और श्रीलंका आदि देशों के छात्र आते थे। वर्ष 1983 में भी वियतनाम के चार छात्र अध्ययन के लिए आए थे; परंतु संस्थान में अंग्रेजी के प्राध्यापक नहीं रहने के कारण इन छात्रों का नामांकन नहीं किया जा सका था। इस संस्थान से अब तक 150 छात्र एम.ए., 36 छात्र पी.एच.डी. और डी. लिट कर चुके हैं।
सूत्रों ने बताया कि भगवान् महावीर के निर्वाण-समारोह के अवसर पर भारत सरकार ने वर्ष 1972 में इस संस्थान के छात्रावास के निर्माण के लिए दो लाख पचास हजार रुपए तथा 'महावीर स्मारक' के विकास के लिए भी इतनी ही धनराशि प्रदान की थी, लेकिन आज तक इस पर कार्य प्रारंभ नहीं किए जा सके और न ही धनराशि का ही कोई पता है। सूत्रों के अनुसार संस्थान के लिए भूमिदान देने वालों में याकूब मियां ने 20 डिसमिल, दहाऊर पासवान ने 40 डिसमिल और महावीर पासवान ने 72 डिसमिल जमीन दान में दी है। ___इसमें सुखद आश्चर्य की बात तो यह है कि इन भूमिदाताओं में से कोई भी जैन-धर्मावलम्बी नहीं है।
-(वार्ता, हाजीपुर समाचार-एजेंसी द्वारा प्रकाशित सामग्री की साभार प्रस्तुति) **
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प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002