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14. जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर (वि.सं. 1973) से प्रकाशित। 15. देवचन्द लालभाई पुस्तकोद्धार फण्ड, बम्बई (वि.सं. 1994) से प्रकाशित। 16. दे., भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान (भोपाल, 1962 ई.) लेखक-डॉ. हीरालाल जैन, पृ. 1351 17. प्राकृत टैक्स्ट सोसाइटी, वाराणसी (1961 ई.) से प्रकाशित। . 18. दे., भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, पृ. 1581 19. गायकवाड ओरियण्टल सीरीज, बड़ौदा (1932) से प्रकाशित । 20. जैनधर्म प्रसारक सभा, भावनगर (1906-13 ई.) से प्रकाशित। 21.दे., भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, पृ. 169। 22-24. दे., उत्तरपुराण' का 74वां पर्व। 25-27. वही, 75वां पर्व। 28. वही, 76वां पर्व। 29-31. वही 76वां पर्व। 32. वड्ढमाणचरिउ, 1/9/101 33. णमो अरिहंतानं णमो सवसिधानं ऐरेन (संस्कृत-ऐलेन), महाराजेन महामेघवाहनेन..... - दि. नागरी प्रचारिणी, 8/3/12)। 34. मुहणोत नैणसी री ख्यात, भाग 1, पृ. 232 । 35. वड्ढमाण, 5/10-23। 36. दे. इसी प्रस्तावना का शस्त्रास्त्र-प्रकरण। 37. वड्ढमाण, 4/13-14; 4/15/1-71 38-39. वही, 4/15/8-12: 4/16-17। 40. वड्ढमाण, 4/2-4, राजा प्रजापति ने विद्याधरों में फूट डालने के लिए ही विद्याधर राजा ज्वलनजटी की पुत्री स्वयंप्रभा को अपनी पुत्रवधू बनाया। 41. पाँचवीं सन्धि द्रष्टव्य। 42. वड्ढमाणचरिउ, 5/10, 16 । 43. वड्ढमाणचरिउ, 5/11/13-141 44. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा द्वारा सम्पादित तथा काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा 1929 ई. में प्रकाशित। 45. पासणाहचरिउ, 1/2/16 । 46. पृथ्वीराज रासो, (ना.प्र.स.), प्र.भा., भूमिका, पृ. 25-261 47. सम्राट् पृथ्वीराज, कलकत्ता (1950), पृ. 30-31। 48. सम्राट् पृथिवीराज, पृ. 40। 49. पासणाहचरिउ (अप्रकाशित) 1/2/26; 8/1/31 50. वही, 1/2/14। 51. वही. 1/4/11 52. पृथिवीराजरासो, 18/2; 96 तथा 19/26-27। 53-54. Murry's Northern India. Vol. I, page 375. 55. पासणाह, 1/4/2। 56. सम्राट् पृथिवीराज, पृ. 85 ।
–(महाकवि विबुध श्रीधर द्वारा रचित 'वड्ढमाणचरिउ' की प्रस्तावना से उद्धत। सम्पादक-अनुवादक - डॉ. राजाराम जैन, प्रकाशक—भारतीय ज्ञानपीठ, 1975 ई.)
भारत को मातृभूमि मानने वाला ही हिंदू 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' के सरसंघचालक के.एस. सुदर्शन ने कहा कि हिन्दू' शब्द को किसी धर्म से जोड़कर नहीं देखा जा सकता। जो भी भारत को अपनी मातृभूमि मानता है, वही हिन्दू है। कल यहाँ आयोजित हिन्दू संगम में सुदर्शन ने कहा कि यहाँ रहनेवाले मुसलमान व ईसाई भी हिन्दू हैं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने एक आदेश में 'हिन्दू' शब्द की व्याख्या करते हुए इसे जीवनपद्धति बताया है। आर.एस. एस. भी इसी अवधारणा में विश्वास करता है।
-(के.एस. सुदर्शन, दैनिक जागरण', 17, दिसम्बर, 2002, नई दिल्ली, पृष्ठ 9)
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प्राकृतविद्या- अक्तूबर-दिसम्बर '2002