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रत्नत्रय अष्टक
-डॉ. महेन्द्र सागर प्रचंडिया
मिलते जब चारित्रमय, ज्ञान और श्रद्धान । रत्नत्रय का तब बने, रूप-स्वरूप महान् ।। 1।।
दर्शन से दृष्टी मिले, उपजे शुभ श्रद्धान। दर्शन से दुनिया दिखे, जन्म-मरण संस्थान ।। 2 ।।
खुली आँख से देखिए, दिखता है विज्ञान । आँख बंद कर पेखिये, उपजे सम्यक्-ज्ञान ।। 3 ।।
ज्ञान और श्रद्धान से, जग-जीवन निस्सार। ज्ञान-ध्यान से कीजिए, जीवन का उद्धार ।। 4।।
सम्यक् दर्शन-ज्ञान से, जागे आतम-राम । लखें आत्मिक-आँख से, दिखें सभी अभिराम ।।5।।
चय और संचय जब छुटे, निखरे तब चारित्र । वीतरागता में लखे, अपना चित्र सचित्र ।। 6।।
संग्रह से है बोझ सब, अपरिग्रह से ओज । ओज उजागर से जगे, आप आप में रोज।। 7।।
रत्नत्रय से मुखर हो, मुक्ति-मार्ग महान् । रत्नत्रय के ब्याज से, होय त्वरत कल्यान ।। 8 ।।
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प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002