Book Title: Prakrit Vidya 2002 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 49
________________ 'आदिक्षान्तसमस्तवर्णनकरी (वर्णनिकरी)।' जिह्वामूलीय, उपध्मानीय तथा प्लुत को भी स्वतन्त्र-वर्ण मान लेने पर कातन्त्र में व्यञ्जनसंज्ञक-वर्णों की संख्या 37 हो जाती है। 6. वर्गसंज्ञा कातन्त्र– “ते वर्गा: पञ्च पञ्च पञ्च" – (1/1/10)। 'क' से लेकर 'म' तक के 25 वर्गों में से पाँच-पाँच वर्गों के समुदाय की 'वर्ग' संज्ञा होती है। इसलिए 5 वर्ग होते हैं। 1. कवर्ग — क, ख, ग, घ, ङ। 2. चवर्ग – च, छ, ज, झ, ञ । 3. टवर्ग — ट, ठ, ड, ढ, ण। 4. तवर्ग - त, थ, द, ध, न। 5. पवर्ग - प, फ, ब, भ, म। कच्चायन— “वग्गा पञ्च पञ्च सोमन्ता" – (1/1/7) । उक्त के अनुसार यहाँ भी पाँच वर्ग स्वीकृत हैं। समीक्षा- 'ऋक्प्रातिशाख्य' आदि प्राचीन ग्रन्थों में इस संज्ञा का प्रयोग किया गया है। वाजसनेयिप्रातिशाख्य' के अनुसार क्रमश: 5-5 वर्गों के अन्तर्गत प्रथम-वर्ण से ही वर्ग का बोध होता है, अन्य वर्गों से नहीं—“प्रथमग्रहणे वर्गम्” (1/64)। पाणिनि ने इनका व्यवहार उदित्' पद से किया है—“अणुदित् सवर्णस्य चाप्रत्यय:" (अ. 1/1/69)। 7. अनुस्वारसंज्ञा कातन्त्र– “अं इत्यनुस्वार:” – (1/1/19)। स्वरसंज्ञक वर्ण के ऊपर तिलवत् या अर्धचन्द्रवत् चिह्न की 'अनुस्वार' संज्ञा की गई है—एको बिन्दुरनुस्वारस्तिलवद् वार्धचन्द्रवत् ।' __ कच्चायन- “अं इति निग्गहीतं" – (1/118)। इसमें अनुस्वार की 'निग्गहीत' संज्ञा की गई है। समीक्षा— स्वर के साथ मिलकर इसका उच्चारण होता है, इसलिए इसे 'अनुस्वार' कहते हैं— 'अनुस्वर्यते संलीनं शब्द्यते इत्यनुस्वारः'। इसकी लिपि दो प्रकार की होती है-., ५। इसे पाणिनीय आदि व्याकरणों में अयोगदाह कहा गया है, परन्तु कातन्त्रकार इसे योगवाह मानते हैं। 8. घोषसंज्ञा कातन्त्र– “घोषवन्तोऽन्ये" – (1/1/12)। अघोष से भिन्न 21 वर्गों की घोषसंज्ञा होती है— 'ग, घ, ङ । ज, झ, ञ । ड, ढ, ण। द, ध, न । ब, भ, म । य, र, ल, व, ह, क्ष।' कच्चायन- “परसमा पयोगे" -(1/1/9)। इसमें भी 21 वर्णों की यह संज्ञा होती है। 'ग' से 'ह' तक 20 वर्ण समान हैं, तथा 21वाँ वर्ण 'ळ' समझना चाहिये। समीक्षा- जिन वर्गों के उच्चारण में वायु के वेग से 'नाद-ईषन्नाद' दोनों ही सुनाई पड़ते हैं, उन्हें घोषवान् वर्ण कहा जाता है— 'घोषो विद्यते येषां ते घोषवन्त:' । पाणिनि ने 'ग' से 'ह' तक के 20 वर्णों का बोध 'हस्' प्रत्याहार से कराया है। प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002 0047

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