Book Title: Prakrit Vidya 2002 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 46
________________ कातन्त्र और कच्चायन का तुलनात्मक अध्ययन -प्रो. जानकीप्रसाद द्विवेदी एवं डॉ. सुरेन्द्र कुमार माहेश्वर-परम्परा का प्रतिनिधित्व करनेवाले व्याकरणों में शब्दलाघव, कृत्रिमता, सांकेतिक-शब्दप्रयोग तथा पर्याप्त-ग्रन्थराशि आदि की दृष्टि से यदि पाणिनीय व्याकरण की परम-उपयोगिता मानी जाती है, तो विपुल व्याख्याग्रन्थ, अर्थलाघव, इलोकव्यवहार का अधिक समादर-सरलता तथा शब्दसाधन की संक्षिप्त-प्रक्रिया आदि विशेषताओं के कारण 'कातन्त्रव्याकरण' ने भारतीय विविध-प्रदेशों तथा विदेशों में पर्याप्त-प्रतिष्ठा प्राप्त करके माहेन्द्र-परम्परा को गौरव प्रदान किया है। इसमें जैन-बौद्ध तथा अन्य आचार्यों का भी अविस्मरणीय योगदान रहा है। पूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज की सत्प्रेरणा से वर्तमान जैनसमाज ने तो इसे अपने गौरवग्रन्थ के रूप में स्वीकार कर लिया है। कातन्त्र के आधार पर ठाकुर संग्रामसिंह ने बालशिक्षा व्याकरण तथा ठाकुर शौरीन्द्रमोहन ने गान्धर्वकलापव्याकरण की रचना की थी। सिद्धान्त-प्रक्रिया तथा शब्दावली के प्रयोग की दृष्टि से कातन्त्र का पालिव्याकरण 'कच्चायन' पर सर्वाधिक प्रभाव देखा जाता है। 'कच्चायन' के 675 सूत्रों में से लगभग 325 सूत्र कातन्त्र से समानता रखते हैं। ___ इस पर एक गवेषणापरक प्रामाणिक तुलनात्मक अध्ययन-कार्य की आवश्यकता का अनुभव दीर्घकाल से किया जा रहा था। तदनुसार लगभग 10 वर्ष पूर्व हम दोनों व्यक्तियों ने इस कार्य को करने का विचार किया था, परन्तु इसका शुभारम्भ जनवरी 2001 ई. से हो सका। यह कार्य पुस्तक के रूप में शीघ्र ही पाठकों को उपलब्ध होगा। उसकी एक झलक के रूप में यहाँ लघु-लेख प्रस्तुत किया जा रहा है, जिसमें प्रारम्भिक 14 विषयों का तो संक्षिप्त परिचय कराया गया है, लेकिन विस्तारभय से अग्रिम 63 विषयों के केवल सूत्र-उदाहरण देकर ही सन्तोष करना पड़ा है। ___इतने से भी कातन्त्र-कच्चायन की समानता का दिग्दर्शन अवश्य हो सकेगा, जिसके फलस्वरूप संस्कृत-पालिभाषाओं में प्राप्त घनिष्ठ-सम्बन्ध के अतिरिक्त संस्कृत-पालिव्याकरणों में भी पर्याप्त घनिष्ठता का अनुमान लगाया जा सकता है। 77 विषयों का तुलनात्मकरूप यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है 1044 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002

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