Book Title: Prakrit Vidya 2002 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 42
________________ शोध को कुठाराघाती बताते हुए दिगम्बर-जैन-ग्रंथों एवं अन्य-चर्चाओं का आधार बनाकर भगवान् महावीर की जन्मस्थली कुण्डलपुर-नालंदा' सिद्ध किया। उनके तर्कों की समीक्षा आगे की गयी है। इस आलेख के प्रकाशन के बाद जैन-पत्रकारिता-जगत्, जैन-विद्वान्, संस्थाएँ एवं साधुवर्ग, सभी में भूचाल-सा आ गया और अपने-अपने पक्ष के खण्डन-मण्डन-हेतु अपनी अनेकान्तमयी-प्रज्ञा का असंगत-तर्क, सम्मान, भ्रम निर्माण आदि में अनेक प्रकार हुआ/हो रहा है। लगता है जैन-जगत् समस्याविहीन हो गया है और एकमात्र समस्या भूगोल के गर्त में समाये, विद्वेषियों द्वारा जमींदोज किये 'कुण्डपुर' को खोज निकालना ही शेष रह गयी है, और वह भी मात्र अपनी पूर्वनिर्धारित-धारणानुसार। पूर्व में सर्वमान्य (और स्व-मान्य) कुण्डपुर-वैशाली के विरुद्ध तर्क इसप्रकार है। 1. यह विदेशियों की उपज है, जिन्हें जैनआगम एवं परम्परा. का ज्ञान नहीं होता। वे अप्रमाणिक भी हैं। शोध-खोज का आधार दिगम्बर-जैन-साहित्य से भिन्न श्वेताम्बर, बौद्ध एवं अन्य साहित्य है। उनको स्वीकारने से हमें उनकी अन्य अनेक मान्यताएँ स्वीकारना होंगी, जो अनेक समस्याओं को जन्म देगी। अत: निर्णय जैन-आगम के ही आधार पर किया जाना चाहिये। वैशाली (नाना-नानी) के निकट कुण्डपुर मानने सिद्धार्थ घर-जमाई जैसे तुच्छ हो जायेंगे। तीर्थंकर का जन्म 'ग्राम' संज्ञा मूलक जैसे स्थान में (कुण्डग्राम) कैसे हो सकता है? एक लाख योजन का ऐरावत हाथी कहाँ भ्रमण करेगा और यह परम्परागत श्रद्धा का विषय हैं, आदि। 'कुण्डलपुर-नालंदा' को महावीर की जन्मस्थली के पक्ष की समीक्षा करने के पूर्व यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि दिगम्बर जैन-आगम-ग्रंथों में भगवान् महावीर की जन्मस्थली विदेह-कुण्डपुर' स्वीकार किया है। किन्हीं ग्रंथों में कुण्डपुर' मात्र लिखा है। एक में कुण्डग्राम' एवं एक में 'कुण्डले' लिखा है। किसी ग्रंथ में कुण्डलपुर, कुण्डलपुर-नालंदा या वैशाली को जन्मस्थली नहीं बताया गया। यह भी उल्लेखनीय है कि कुण्डपुर, तत्कालीन राजनीति के अनुसार वैशाली-गणराज्य के अंतर्गत था, जबकि नालंदा राजगृही के अतिनिकट होकर मगध राज का अंग था। भौगोलिकरूप में कुण्डलपुर कभी कहीं अस्तित्व में नहीं रहा। समर्थक-पक्ष का कर्तव्य है कि वह अपने कथन की पुष्टि में उक्त बिन्दुओं को सप्रमाण सिद्ध करें। ऐसा होने पर वह अपने पक्ष को पुष्ट कर सकेगा। अन्यथा आधारहीन अपुष्ट-दोषारोपण से क्या सिद्ध होगा, मात्र सामाजिक-विद्वेष के पैदा करने और अपनी मनोवृत्ति-प्रदर्शन के। उक्त परिप्रेक्ष्य में आर्यिका चन्दनामती जी, पं. शिवचरण लाल जी, प्रो. नरेन्द्र प्रकाश जी एवं डॉ. अभय प्रकाश जी द्वारा उठाये गये बिन्दुओं पर संक्षिप्त-विचारणा इसप्रकार है:___आर्यिका चंदनामतीजी :- प्रज्ञाश्रमणी जी द्वारा जो आगम-प्रमाण दिये हैं, उनमें धवला को छोड़कर सभी में विदेह-कुण्डपुर' का उल्लेख है। 'तिलोयपण्णत्ति' में कुंडले 00 40 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002

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