Book Title: Prakrit Vidya 2002 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 32
________________ यह जो कीली गाड़ी जा रही है, उसे पाँच घड़ी तक कोई भी न छुए", —यह कहकर व्यास ने 60 अंगुल की एक कील वहाँ गाड़ दी और बताया कि वह कील शेषनाग के मस्तक से सट गयी है; उसे न उखाड़ने से आपके तोमर-वंश का राज्य संसार में अचल रहेगा। व्यास के चले जाने पर अनंगपाल ने जिज्ञासावश वह कील उखड़वा डाली। उसके उखड़ते ही रुधिर की धारा निकल पड़ी और उस. कील का कुछ अंश भी रुधिर से सना था। यह देख व्यास बड़ा दु:खी हुआ तथा उसने अनंगपाल से कहा अनंगपाल छक्क वै बुद्धि जोइसी उक्किल्लिय। भयौ तुंअर मतिहीन करी किल्ली तें ढिल्लिय ।। कहै व्यास जगज्योति निगम-आगम हौं जानौ । तुंवर ते चौहान अनत है है तुरकानौ।। हूँ गड्डि गयौ किल्लो सज्जीव हल्लाय करी ढिल्ली सईव। फिरि व्यास कहै सुनि अनंगराइ भवितव्य बात मेटी न जाइ।। उक्त कथन से निम्न तथ्य सम्मुख आते हैं 1. अनंगपाल प्रथम (कल्हन) ने जिस स्थान पर किल्ली गाड़ी थी, उसका नाम 'किल्ली' अथवा 'कल्हनपुर' पड़ा। ___2. अनंगपाल द्वितीय (तोमर) के व्यास ने जिस स्थान पर किल्ली गाड़ी थी, उसे अनंगपाल ने ढीला कर निकलवा दिया। अत: तभी से उस स्थान का नाम ढिल्ली' पड़ गया। 3. जिस स्थान पर किल्ली ढीली होने के कारण इस नगर का नाम 'ढिल्ली' पड़ा, उसी स्थान पर पृथिवीराज का राजमहल बना था।48 'पृथिवीराजरासो' में इस ढिल्ली शब्द का प्रयोग अनेक-स्थलों पर हुआ है। प्राचीन हस्तलिखित-ग्रन्थों में भी उसका यही नामोल्लेख मिलता है। विबुध श्रीधर ने भी उसका प्रयोग तत्कालीन प्रचलित-परम्परा के अनुसार किया है। अत: इसमें सन्देह नहीं कि दिल्ली का प्राचीन नाम ढिल्ली' था। श्रीधर के उल्लेखानुसार उक्त ढिल्ली नगर 'हरयाणा' प्रदेश में था।50 4. भारतीय इतिहास में दो अनंगपालों के उल्लेख मिलते हैं। एक पाण्डुवंशी अनंगपाल (अपरनाम कल्हन) और दूसरा, तोमरवंशी अनंगपाल। इन दोनों की चर्चा ऊपर की जा चुकी है। ‘पासणाहचरिउ' में दूसरे अनंगपाल" की चर्चा है, जो अपने दौहित्र पृथिवीराज चौहान को राज्य सौंपकर 'बदरिकाश्रम चला गया था। उसके वंशज मालवा की ओर आ गये थे, तथा उन्होंने गोपाचल को अपनी राजधानी बनाया था, और जो गोपाचल-शाखा के तोमरवंशी केनाम से प्रसिद्ध हैं। ढिल्ली-नरेश अनंगपाल तोमर के पराक्रम के विषय में कवि ने कहा है कि उसने हम्मीर-वीर को भी दल-बल विहीन अर्थात् पराजित कर दिया था। यह हम्मीर-वीर 40 30 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002

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