Book Title: Prakrit Vidya 2002 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 31
________________ 'वडढमाणचरिउ' में कवि ने लिखा है कि-"चिरकाल तक रण की धुरी को धारण करनेवाले मृतक हुए तेजस्वी नरनाथों की सूची तैयार करने हेतु बन्दीजनों (चारण-भाटों) ने उनका संक्षेप में कुल एवं नाम पूछना प्रारम्भ कर दिया। कवि की यह उक्ति उसकी मानसिक-कल्पना की उपज नहीं है। उसने प्रचलित परम्परा को ध्यान में रखकर ही उसका कथन किया है। बन्दीजनों अथवा चारण-भाटों के कर्तव्यों में एक कर्तव्य यह भी था कि वे वीर-पुरुषों (मृतक अथवा जीवित) की वंश-परम्परा तथा उनके कार्यों का विवरण रखा करें। राजस्थान में यह परम्परा अभी भी प्रचलित है। वहाँ के चारण-भाटों के यहाँ वीर-पुरुषों की वंशावलियाँ, उनके प्रमुख-कार्य तथा तत्कालीन महत्त्वपूर्ण सन्दर्भ-सामग्रियाँ भरी पड़ी हैं। मुहणोत नैणसी (वि.सं. 1667-1727) नामक एक जैन-इतिहासकार ने उक्त कुछ सामग्री का संकलन-सम्पादन किया था जो 'मुहणोत नैणसी री ख्यात'' के नाम से प्रसिद्ध एवं प्रकाशित है। राजस्थान तथा उत्तर एवं मध्यभारत के इतिहास की दृष्टि से यह संकलन अद्वितीय है। कर्नल टॉड ने इस सामग्री का अच्छा सदुपयोग किया और राजस्थान का इतिहास लिखा। किन्तु उक्त ख्यातों में जितनी सामग्री संकलित है, उसकी सहस्रगुनी सामग्री भी अप्रकाशित ही है। उसके प्रकाशन से अनेक नवीन ऐतिहासिक तथ्य उभरेंगे। इतिहास-लेखन के क्षेत्र में इन चारण-भाटों का अमूल्य-योगदान विस्मृत करना समाज की सबसे बड़ी कृतघ्नता होगी। विबुध श्रीधर ने समकालीन चारण-भाटों के उक्त-कार्य का विशेषरूप से उल्लेख कर उनके प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की है। ___3. विबुध श्रीधर ने अपना परिचय देते हुए लिखा है कि वह यमुना नदी पार करके हरयाणा से दिल्ली आया था। 'दिल्ली' नाम पढ़ते-पढ़ते अब 'ढिल्ली' यह नाम अटपटा-जैसा लगने लगा है। किन्तु यथार्थ में ही दिल्ली का पुराना नाम ढिल्ली' एवं उसके पूर्व उसका नाम 'किल्ली' था। 'पृथ्वीराजरासो' के अनुसार पृथ्वीराज चौहान की माँ तथा तोमरवंशी राजा अनंगपाल की पुत्री ने पृथ्वीराज को किल्ली—ढिल्ली का इतिहास इसप्रकार सुनाया है—“मेरे पिता अनंगपाल के पुरखा राजा कल्हण (अपरनाम अनंगपाल), जो कि हस्तिनापुर में राज्य करते थे, एक समय अपने शूर-सामन्तों के साथ शिकार खेलने निकले। वे जब एक विशेष-स्थान पर पहुँचे, (जहाँ कि अब दिल्ली नगर बसा है), तो वहाँ देखते हैं कि एक खरगोश उनके शिकारी कुत्ते पर आक्रमण कर रहा है। राजा कल्हण (अनंगपाल) ने आश्चर्यचकित होकर तथा उस भूमि को वीरभूमि समझकर वहाँ लोहे की एक कीली गाड़ दी तथा उस स्थान का नाम 'किल्ली' अथवा 'कल्हणपुर' रखा। इसी कल्हन अथवा अनंगपाल की अनेक पीढ़ियों के बाद मेरे पिता अनंगपाल (तोमर) हुए। उनकी इच्छा एक गढ़ बनवाने की हुई। अत: व्यास ने मूहूर्त शोधन कर वास्तु-शास्त्र के अनुसार उसका शिलान्यास किया और कहा कि “हे राजन्, प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002 00 29

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