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कौन था और कहाँ का था, कवि ने इसका कोई उल्लेख नहीं किया, किन्तु ऐसा विदित होता है कि यह कांगड़ा का नरेश हाहुलिराव हम्मीर रहा होगा, जो 'हाँ' कहकर अरिदल में घुस पड़ता था और उसे मथ डालता था, इसीलिए उसे 'हाहुलिराव' हम्मीर कहा जाता था। यथा- हाँ कहते ढीलन करिय हलकारिय अरि मथ्थ।
ताथें विरद हमीर को हाहुलिराव सुकथ्थ ।। अनंगपाल के बदरिकाश्रम चले जाने के बाद यह हम्मीर पृथिवीराज चौहान का सामन्त बन गया था, किन्तु गोरी ने उसे पंजाब का आधा राज्य देने का प्रलोभन देकर अपनी ओर मिला लिया। इसीकारण यह चालीस सहस्र पैदल-सेना और पाँच सहस्र अश्वारोही-सेना लेकर गोरी से जा मिला। हम्मीर को समझा-बुझाकर दिल्ली लाने के लिए कवि चन्दवरदाई पृथिवीराज की आज्ञा से कांगड़ा गये थे। चन्दवरदाई ने उसे भली-भाँति समझाया और बहुत कुछ ऊँच-नीच सुनाया; किन्तु वह दुष्ट पंजाब का आधा राज्य पाने के लोभ से गोरी के साथ ही रह गया। इतना ही नहीं, जाते समय वह चन्दवरदाई को जालन्धरी देवी के मन्दिर में बन्द कर गया। जिसका फल यह हुआ कि वह गोरी एवं चौहान की अन्तिम-लड़ाई के समय दिल्ली में उपस्थित न रह सका। चौहान तो हार ही गया, किन्तु हम्मीर को भी प्राणों से हाथ धोना पड़ा। गौरी ने उसे लालची एवं विश्वासघाती समझकर पंजाब का आधा राज्य देने के स्थानपर उसकी गर्दन ही काट डाली।
. उक्त उपलब्धियों एवं अनुपलब्धियों अथवा गुण-दोषों के आलोक में कोई भी निष्पक्ष आलोचक विबुध श्रीधर का सहज ही मूल्यांकन कर सकता है। कवि ने विविध-विषयक 6 स्वतन्त्र एवं विशाल ग्रन्थ लिखकर अपभ्रंश-साहित्य को गौरवान्वित किया है। निस्सन्देह ही वे भाषा एवं साहित्य की दृष्टि से महाकवियों की उच्च श्रेणी में अपना प्रमुख-स्थान रखते हैं। सन्दर्भ-ग्रन्थ-सूची 1. जीवराज ग्रन्थमाला शोलापुर (1943, 53 ई.) से दो खण्डों में प्रकाशित, सम्पादक : प्रो. ए. एन. उपाध्ये तथा डॉ. हीरालाल जैन। 2. भारतीय ज्ञानपीठ, काशी (1954 ई.) से प्रकाशित । 3. रावजी सखाराम दोशी, शोलापुर से (1931 ई.) प्रकाशित। 4. माणिकचन्द्र दि. जैन ग्रन्थमाला, बम्बई (1937 ई.) से प्रकाशित। 5. भारतीय ज्ञानपीठ, काशी (1954-55) से दो भागों में प्रकाशित। 6. भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली (1975 ई.) से प्रकाशित। 7. भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाश्यमान। 8. माणिकचन्द्र दि. जैन ग्रन्थमाला, बम्बई (1937-47) से प्रकाशित। 9. भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली (1975 ई.) से प्रकाशित (सम्पादक डॉ. राजाराम जैन)। 10. भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाश्यमान, (सम्पादक—डॉ. राजाराम जैन)। 11. रइधू ग्रन्थावली के अन्तर्गत जीवराज ग्रन्थमाला शोलापुर से शीघ्र ही प्रकाश्यमान। 12. भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली से शीघ्र ही प्रकाश्यमान। 13. दिगम्बर जैन पुस्तकालय, सूरत से प्रकाशित ।
प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002
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