Book Title: Prakrit Vidya 02
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 44
________________ गये, जहाँ उन्होंने लिच्छवी-गण के प्रधान को, जो निम्रन्थ (जैन मुनि के अनुयायी) थे, अपना गृहस्थ-अनुयायी बनाया। बौद्धों के कोटिग्राम' का जैनों के 'कुण्डग्राम' होने की पूरी सम्भावना है। जातिकों की पहचान ज्ञातक-कुल के क्षत्रियों से की जा सकती है, जिनके वंशज भगवान् महावीर थे। कुण्डग्राम और वाणिज्यग्राम 'विदेह' की राजधानी वैशाली' के उपनगर थे, जिसकी पहिचान वर्तमान वैशाली-क्षेत्र के बनियागाँव' और 'वासुकुण्ड' से की जा सकती है। जैकोबी ने हॉर्नले द्वारा भी पहचान किये गये इन्हीं क्षेत्रों का समर्थन किया है। ए.एफ. रुडोल्फ हॉर्नले द्वारा अंग्रेजी में अनूदित उवासगदसाओ' (बिब्लियोथेका इण्डिका सीरीज, पृ.3-6) में 'बसाढ़' को स्पष्टतया भगवान् महावीर का जन्मस्थान बताया गया है। हॉर्नले का कहना है कि बनियाग्राम' लिच्छवी-देश की राजधानी वैशाली का ही दूसरा नाम है। यद्यपि कल्पसूत्र' में इसकी चर्चा अलग से है, परन्तु इसे वैशाली से सम्बद्ध बताया गया है। सच्चाई यह है कि वैशाली नगर का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत था और इसके परिक्षेत्र में स्थानीय वैशाली (वर्तमान बसाढ़) के अतिरिक्त बनियाग्राम' और 'कुण्डग्राम' अथवा 'कुण्डपुर' जैसे दूसरे क्षेत्र भी समाहित थे। ये दोनों स्थान बनिया' और 'वासुकुण्ड' नामक गाँवों के रूप में आज भी विद्यमान हैं। वैशाली के कुण्डग्राम को ही भगवान् महावीर का जन्मस्थान होने के कारण उन्हें वसालीय' यानि वैशाली का वासी' कहा गया है। सिंक्लेयर स्टीवेंसन ने अपनी पुस्तक 'दि हर्ट ऑफ जैनिज्म' (पृ. 21-22) में लिखा है कि प्राचीन वैशाली में ब्राह्मण, क्षत्रिय और वणिक वर्ग के लोग अलग-अलग पुरों में रहते थे और यह पृथक्ता इतनी बड़ी थी कि उनके पुरों की अलग-अलग गाँवों के रूप में सम्बोधित किया गया, जैसे— क्रमश: वैशाली, कुण्डग्राम और वाणिज्यग्राम। .. प्रसिद्ध इतिहासकार विंसेण्ट ऑर्थर स्मिथ ने भी वैशाली को ही भगवान् महावीर का जन्मस्थान बताया (जर्नल ऑफ रॉयल एशियाटिक सोसाइटी', 1902, पृ. 282-283; 28687)। वे लिखते हैं कि जैन-परम्परानुसार वैशाली, कुण्डग्राम और बनियाग्राम जैसे तीन स्पष्ट प्रक्षेत्र सन्निहित थे। वैशाली की पहचान राजा विशाल के गढ़क्षेत्र से की जा सकती है। बनियागाँव (चकरामदास के समीपस्थ) स्पष्टतया बनियाग्राम का प्रतिनिधित्व करता है। इस गाँव में अनेक टीले हैं और आज (1902 ई.) से दस वर्ष पहले सतह से आठ फीट नीचे से जैन-तीर्थकर की दो प्रतिमायें मिलीं। यह स्थान भगवान् महावीर का निवास-स्थान था। कोल्लाग सम्भवत: मर्कटह्रद-सरोवर के समीपस्थ कोल्हुआ' का क्षेत्र था और कुण्डग्राम, जो वैशाली का ब्राह्मणपुर था, की पहचान 'वासुकण्ड' से की जा सकती है। स्मिथ ने 'इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रिलीजन एण्ड इथिक्स' (अंक 12, प्र. 567-68) में लिखा है कि भगवान महावीर वैशाली के एक कुलीन-परिवार से सम्बद्ध थे और वहीं (वैशाली में) उनका जन्म हुआ और प्रारम्भिक जीवन बीता। प्रव्रज्या ग्रहण करने के पश्चात् बारह वर्षावास उन्होंने वैशाली में ही बिताये। एल.एस.एस.ओ. माली ने 'बंगाल डिस्ट्रिक्ट गजेटियर-मुजफ्फरपुर' (पृ. 13-14) में 00 42 प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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