Book Title: Prakrit Vidya 02
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 192
________________ आपने 1954 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से हिन्दी (प्राकृत-पालि के साथ) में एम.ए. तथा शास्त्राचार्य और बिहार विश्वविद्यालय से सन् 1958 में एम.ए. प्राकृत एवं जैनोलॉजी तथा 1965 में पी-एच.डी. की उपाधियाँ प्राप्त की। डॉ. जैन आरा में प्राकृत के प्राध्यापक नियुक्त हुए तथा बाद में मगध विश्वविद्यालय में संस्कृत तथा प्राकृत विभाग' के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष नियुक्त हुए। डॉ. जैन ने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं भाषावैज्ञानिक महत्त्व की प्राकृत-अपभ्रंश की 32 अप्रकाशित दुर्लभ-पाण्डुलिपियों की खोज की, जिनमें से वैज्ञानिकपद्धति से सम्पादन के साथ 10 ग्रन्थों का प्रकाशन हो चुका है। आपने 'प्राकृत परिषद्' की स्थापना की तथा मगध विश्वविद्यालय में संस्कृत के साथ प्राकृत विभाग की स्थापना भी की। सम्प्रति डॉ. जैन 'प्राकृतविद्या' के प्रधान-सम्पादक तथा श्री कुन्दकुन्द भारती शोध संस्थान, दिल्ली के मानद-निदेशक हैं। आप जयपुर से प्रकाश्यमान 'एन्साइक्लोपीडिया ऑफ जैनिज्म' के शौरसेनी-प्राकृत-साहित्य खण्ड के उपसम्पादक' भी हैं। —सम्पादक ** प्रो. (डॉ.) वाचस्पति उपाध्याय जी को संस्कृतभाषा-विषयक राष्ट्रपति-सम्मान महामहिम राष्ट्रपति जी से प्रशस्ति-ग्रहण करते हुए प्रो. (डॉ.) वाचस्पति उपाध्याय सुल्तानपुर (उ.प्र.) में जन्मे प्रो. वाचस्पति उपाध्याय मीमांसादर्शन के विशिष्ट विद्वान् हैं। आप महामहोपाध्याय पद्राभिराम शास्त्री जी की यशस्वी शिष्य-परम्परा के ज्योतिर्मय-रत्न हैं। सम्पूर्ण विश्व में मीमांसादर्शन के अतिरिक्त समस्त भारतीय दर्शनों, संस्कृतभाषा एवं साहित्य के क्षेत्र में आपकी अतिविशिष्ट-ख्याति है। आपने कलकत्ता विश्वविद्यालय में उच्च-शिक्षा ग्रहण की, तथा प्रथमत: वहीं पर अध्यापन-कार्य प्रारम्भ 00 190 . प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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