Book Title: Prakrit Vidya 02
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 219
________________ राजधानी नई दिल्ली के आध्यात्मिक नन्दनवन में रित ज्ञानतीर्थ - कुन्दकुन्द भारती केसरी पुष्पगुच्छयुक्त अशोकवृक्ष, आम्रवृक्ष, सप्तपर्णवृक्ष एवं चम्पावृक्ष आदि मांगलिक वृक्षों से युक्त उपवन को नन्दनवन कहा जाता है। कुन्दकुन्द भारती परिसर में अशोकवृक्ष धर्मानुरागी श्री सुरेश चन्द्र जी जैन (EIC) एवं चौबीस तीर्थंकरों के मंगलवृक्ष धर्मानुरागी श्री रमेश चन्द्र जैन (PRJ) के सौजन्य से सुशोभित हैं। ARMA amalini 199NDONTota तर Aadim __ दिगम्बर जैन आगम-ग्रन्थों की माध्यम-भाषा 'शौरसेनी प्राकृत', जिसे वृहत्तर भारत के सर्वाधिक व्यापक क्षेत्र में बोली जानेवाली भाषा का स्वरूप प्राप्त था, के प्रचार-प्रसार के लिए कृतसंकल्प उच्चस्तरीय शिक्षण एवं शोध के संस्थान का नाम है 'कुन्दकुन्द भारती' । ___ शौरसेनी प्राकृत को वैयाकरणों ने अन्य प्राकृतों की प्रकृति कहा है—“प्रकृति: शौरसेनी" – (आचार्य वररुचि, प्राकृतप्रकाश) तथा आचार्य रविषेण ने जिसे भाषात्रयी में सादर स्मृत किया है "नामाख्यातोपसर्गेषु निपातेषु च संस्कृता। प्राकृती शौरसेनी च भाषा यत्र त्रयी स्मृता।।" – (पद्मपुराण, 24/11) ऐसी महत्त्वपूर्ण भारतीय भाषा के प्रमुख ज्ञान-केन्द्र ‘कुन्दकुन्द भारती' के लिए निरन्तर उन्नति एवं प्रगति-हेतु हार्दिक शुभकामनाओं के साथ 'जैनबोधक' (जैनसमाज का प्राचीनतम प्रतिनिधि पत्र) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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