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कार्यों को कोई देखने-परखनेवाला नहीं। किन्हीं विशिष्ट-अवसरों पर उनका पूरा लेखा-जोखा अवश्य ही प्रकट हो जाता है, जो पुरस्कृत अथवा दण्डित करने के लिये पर्याप्त होता है।
राष्ट्रपति सहस्राब्दी पुरस्कार राष्ट्रपति जी की अस्वस्थता के कारण मुझे एक वर्ष बाद मिला। यह समारोह इन्वेस्टीट्यूर सेरेमोनी (Investiture Ceremony) कहलाती है। यह आयोजन 6 फरवरी 2002 को सम्पन्न किया गया। पुरस्कृत-विद्वानों को उनकी अपनी-अपनी धर्मपत्नियों के साथ भारत सरकार हवाई उड़ान से आने-जाने का अनुरोध करती है तथा उन्हें 'थ्री स्टार होटल' में 4 दिनों तक अपने सम्मान्य राजकीय-अतिथि के रूप में नि:शुल्करूप से रहने की पूर्ण-व्यवस्था करती है। पुरस्कार-सम्मान भी पूर्ण राजकीय शान-शौकत के साथ प्रदान किया जाता है। पुरस्कृतों को सभागार में अग्रश्रेणी में तथा दर्शकों की दीर्घा उसके बगल में तथा सम्मुख होती है। राष्ट्रपति के सभागार में आने के पूर्व पुरस्कृतों को रिहर्सल की प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। उसमें उन्हें राष्ट्रपति जी के सम्मुख कहाँ-कहाँ से, कैसे-कैसे अनुशासनपूर्वक जाना चाहिये, कैसे पुरस्कार ग्रहण करना चाहिये तथा पुरस्कार ग्रहण कर कहाँ-कहाँ से कैसे-कैसे लौटकर अपना सुनिश्चित स्थान ग्रहण करना चाहिये, यही बताया जाता है।
उक्त प्रक्रियाओं से गुजरते समय मुझे 'मूलाचार' की उस गाथा का स्मरण हो आया, जिसमें बताया गया है कि श्रावक एवं साधु को किस प्रकार चलना, फिरना, उठना अथवा बैठना चाहिये— “कंध चरे कधं चिट्ठे कंध बए” आदि आदि।
रिहर्सल के समय राजकीय उद्घोषिका पुरस्कृत-विद्वानों का पूर्ण-परिचय प्रस्तुत करती है। तत्पश्चात् विशिष्ट पोशाक में लम्बे-चौड़े कद वाले 20-25 हट्टे-कट्ठे नौजवान अंगरक्षक आते हैं, जो राष्ट्रपति जी के मंच को चारों ओर से घेरकर अपना-अपना स्थान ग्रहण करते हैं। तत्पश्चात् बिगुल बजने के साथ ही सुनिश्चित समय पर राष्ट्रपति जी मंच पर पधारते हैं और 'राष्ट्रिय गान' के बाद कार्यक्रम प्रारम्भ हो जाता है। आयोजन के बाद पुरस्कृतों को राष्ट्रपति जी की ओर से भोज दिया जाता है। वे सभी से सौहार्दपूर्वक मिलते, हाथ मिलाते और वार्तालाप करते हैं। उनके बच्चों के साथ भी झुककर प्यार से हाथ मिलाते एवं मनोरंजक वार्तालाप करते हैं। अगले दिन पुरस्कृतों को भारत सरकार की ओर से दिल्ली के विशिष्ट-स्थलों का भ्रमण कराया जाता है और स्नेहिल-वातावरण में सभी को विदाई दी जाती है। ___ राष्ट्रपति सहस्राब्दी-पुरस्कार के उपलक्ष्य में मुझे अपने स्नेही मित्रों, गुरुजनों, शिष्यों, श्रीमन्तों, धीमन्तों एवं नेताओं के इतने अधिक बधाई-सम्बन्धी टेलीफोन, तार एवं पत्र मिले कि मैंने उतने की आशा न की थी। कुछ संस्थानों ने मेरे इस सम्मान के उपलक्ष्य में आयोजन भी किये। जैन सिद्धांत भवन, आरा के कुलपति श्री बाबू सुबोधकुमार जी जैन ने विशिष्ट आयोजन कर नगर के प्राध्यापकों एवं समाज के नर-नारियों के मध्य 'सिद्धान्ताचार्य' की उपाधि प्रदान कर मुझे स्वर्णसूत्र-ग्रथित विशिष्ट शाल उढ़ाकर अपना
प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक
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