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'राष्ट्रपति-द्विसहस्राब्दी-पुरस्कार' मेरा सम्मान
नहीं, बल्कि प्राकृत, जैन-विधा तथा जैन-पाण्डुलिपियों का सम्मान है
__-प्रो. (डॉ.) राजाराम जैन (राष्ट्रपति सहस्राब्दी सम्मान पुरस्कार द्वारा सम्मानित)
30 अगस्त सन् 2000 की वह तिथि मेरे जीवन की सर्वाधिक सुखद घड़ी थी, जब भारत सरकार के 'मानव संसाधन विभाग' के संयुक्त शिक्षा-सलाहकार डॉ. पी.एच. सेथुमाधवराव का मुझे हार्दिक बधाइयों से भरा हुआ पत्र मिला, जिसमें मुझे यह सूचना दी गई थी कि भारत सरकार की प्रवर-समिति की अनुशंसा पर भारत के माननीय राष्ट्रपति जी ने मुझे द्विसहस्राब्दी-सम्मान से पुरस्कृत एवं सम्मानित करने का निर्णय लिया है। इसकी सूचना यद्यपि सभी दैनिक समाचारपत्रों एवं समाचार-मीडिया से प्रसारित हो चुकी थी, किन्तु मैं उन्हें पढ़/सुन नहीं सका था और यदि जयपुर से हमारे स्नेही-मित्र डॉ. सुदीप जी जैन दिल्ली. प्रो. डॉ. प्रेमचन्द्र जी जैन (राजस्थान विश्वविद्यालय) एवं बनारस के मेरे अनन्य-मित्र डॉ. फूलचन्द्र जी प्रेमी ने टेलीफोन द्वारा तदर्थ मुझे तत्काल बधाई न दी होती, तो सम्भवत: मैं इस सुखद-समाचार से अगले कुछ सप्ताहों तक अनभिज्ञ ही बना रहता।
भारत सरकार राष्ट्रपति-पुरस्कार-हेतु चयनित प्राच्य-विद्याविद् विद्वानों (संस्कृत, प्राकृत/पालि, अरबी एवं फारसी) के नामों की घोषणा प्रतिवर्ष स्वतन्त्रता-दिवस (15 अगस्त) के दिन करती है और चयनित विद्वानों को बधाई-पत्र प्रेषित करते हुए उन विद्वानों के कृतित्व एवं व्यक्तित्व को उजागर करनेवाले तथ्यमूलक सचित्र जीवन-वृत्त (हिन्दी व अंग्रेजी में) भेजने का अनुरोध करती है, जिससे कि उन्हें सचित्र पुस्तकाकार प्रकाशित कर राष्ट्रपति भवन के 'अशोक सभागार' में पुरस्कार-सम्मान प्रदान करने के अवसर पर पुरस्कृतविद्वानों के साथ-साथ उपस्थित केन्द्रीय मन्त्रियों, शिक्षाविदों एवं प्रतिष्ठित नागरिकों को उक्त पुस्तिका का वितरण किया जा सके। ___ राष्ट्रपति-पुरस्कार प्रदान करने सम्बन्धी भारत सरकार की एक उच्चस्तरीय प्रवरसमिति' होती है, जो 'यू.जी.सी.' तथा 'युनिवर्सिटीज ऑफ इण्डिया' की 'ईयर-बुक्स' (Year
प्राकृतविद्या+जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक
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