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पुस्तक का नाम : क्षत्रचूडामणि (जीवंधर-चरित्र) रचयिता : आचार्य वादीभ सिंह सम्पादक : ब्र० यशपाल जैन प्रस्तावना : पण्डित रतनचन्द भारिल्ल
: श्री अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् ट्रस्ट,
129, जादौन नगर 'बी', स्टेशनरोड, दुर्गापुरा, जयपुर-302018 (राजस्थान) संस्करण : प्रथम, 2001 ई०
: 30/- (डिमाई साईज़, पक्की ज़िल्द, लगभग 560 पृष्ठ) ____ दिगम्बर-जैनाचार्य वादीभसिंह सूरि द्वारा विरचित 'क्षत्रचूड़ामणि' अपरनाम जीवंधर-चरित्र' नामक यह काव्यग्रन्थ न केवल नीतिशास्त्र का अपितु भारतीय संस्कृति, सभ्यता एवं ज्ञान- विज्ञान का अभूतपूर्व कोश है। इसका प्रमुख वैशिष्ट्य यह है कि इसमें कहीं भी कोई बात बोझ रूप में नहीं लगती। सीधे-सादे कथासूत्र और घटनाक्रम में सम्पूर्ण नीतिज्ञान एवं सांस्कृतिक ज्ञान-विज्ञान के तत्त्व मर्मस्पर्शी शैली में पिराये गये हैं। - विद्वद्वरेण्य पं. रतनचन्द भारिल्ल की प्रस्तावना एवं ब्र. यशपाल जी का सम्पादन भी इसका श्रीवर्धन करते हैं। श्री अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् ट्रस्ट द्वारा इसका गरिमापूर्ण-रीति से प्रकाशन हुआ है —यह भी उल्लेखनीय है। प्रत्येक सामाजिक कार्यकर्ता, श्रावक-श्राविका एवं साहित्यिक-रुचि सम्पन्न व्यक्ति के लिये यह कृति अवश्य अपने निजी-संग्रह में रखने योग्य एवं बारंबार स्वाध्याय करने योग्य है। -सम्पादक **
(5) पुस्तक का नाम : प्राकृत भाषाओं का तुलनात्मक व्याकरण लेखक : डॉ० के.आर. चन्द्र प्रकाशक : दलसुख मालवणिया प्राकृत ग्रन्थ परिषद्,
12, भगतबाग सोसायटी, शारदा मंदिर रोड, अहमदाबाद-380007 संस्करण : द्वितीय, 2001 ई०
: 40/- डिमाई साईज़, पेपरबैक, लगभग 130 पृष्ठ) इस पुस्तक का प्रथम-संस्करण 1982 में प्रकाशित हुआ था, उसके विषय में प्राकृतभाषा के तलस्पर्शी मनीषी प्रो. हरिवल्लभ चुन्नीलाल भायाणी ने लिखा था कि “अध्यापनकार्य की दृष्टि से प्रस्तुत प्रयास सराहनीय है। इसकी उपयुक्तता का निर्णय तो अभ्यास के वर्गों में ही किया जा सकता है। प्रशिष्ट-भाषाओं के अध्ययन-अध्यापन को बनाये रखने के लिए छोटे प्रयास भी बड़े मूल्यवान् होते हैं।"
इस संस्करण में प्रथम संस्करण का नौवां अध्याय 'प्राकृतभाषाओं में प्राक्-संस्कृत तत्त्व'
मूल्य
00 174
प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक For Private & Personal Use Only
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