________________
समाचार दर्शन
... 'आचार्य कुन्दकुन्द' एवं 'आचार्य उमास्वामी' पुरस्कार समर्पित
'आचार्य कुन्दकुन्द एवं आचार्य उमास्वामी पुरस्कारों के समर्पण-समारोह के सुअवसर पर मंगल-आशीर्वाद प्रदान करते हुये पूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द मुनिराज ने कहा कि भगवान् महावीर के जीवन की प्रत्येक घटना और उनके द्वारा बताया गया आत्मकल्याण का मार्ग प्रत्येक-काल में हर व्यक्ति के लिये उपयोगी है, और उसे अपना आदर्श बनाकर ही हम अपना जीवन मंगलमय बना सकते हैं। आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज ने अन्य-भाषाओं के विकास में और उन भाषाओं में व्याप्त प्राकृत के शब्दों की चर्चा करते हुए कहा कि तुलसीदास के काव्यग्रन्थ 'रामचरित मानस' में 68 प्रतिशत और वेदों में 66 प्रतिशत प्राकृत के शब्द हैं। डॉ. नामवर सिंह की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी रचना में ओज और तेज है तथा उनकी कलम पर सरस्वती विराजती है। उन्होंने सम्मानित विद्वानों को अपना शुभाशीष देते हुये कहा कि प्राकृत और संस्कृत-भाषायें भारत की मूलभूत प्राचीन-भाषायें हैं, तथा भारत का अधिकांश प्राचीन ज्ञान-विज्ञान इन्हीं भाषाओं के ग्रन्थों में सुरक्षित है। ऋषि-परम्परा ने संस्कृतभाषा को मुख्यता दी, तथा श्रमण-परम्परा के मुनियों ने प्राकृतभाषा को विशेषरूप से अपनाया। इन दोनों परम्पराओं के मनीषियों द्वारा भारतीय संस्कृति और ज्ञान-विज्ञान का प्रचार-प्रसार युगों से भारत देश में होता रहा है। हम अपनी प्राचीन-विरासत को यदि भूल जायेंगे, तो हम अपनी संस्कृति और परम्परा को भी भूल जायेंगे। इसलिये हमें प्राकृतभाषा एवं संस्कृतभाषा को सीखना होगा, तथा इनके विद्वानों का सम्मान करने के साथ-साथ इस विद्या के क्षेत्र में अधिक से अधिक लोग आकर्षित हों —ऐसा भी प्रयत्न करना होगा।
प्राकृतभाषा एवं साहित्य-विषयक 'आचार्य कुन्दकुन्द पुरस्कार' से सम्मानित विश्वविख्यात भाषाशास्त्री प्रो. नामवरसिंह जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि "पूज्य आचार्यश्री के अगाध ज्ञान से मैं वर्षों से परिचित हूँ, और ऐसे सन्तों की प्रेरणा और आशीर्वाद पाकर ही मैं प्राकृतभाषा और उसके साहित्य के क्षेत्र में कुछ योगदान कर सका हूँ। मेरी हार्दिक भावना है कि देश के प्रत्येक विश्वविद्यालय में प्राकृतभाषा के अध्ययन-अध्यापन के लिये स्वतन्त्र और समृद्ध विभाग हों, ताकि अधिक से अधिक लोक इसे सीख सकें और इस भाषा में लिखित भारतीय ग्रन्थों का अध्ययन और अनुसंधान कर सकें। इस भाषा के ग्रन्थों में ऐसे रहस्य
40 184
प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International