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छिपे हुये हैं, कि जिनको जान ले, तो सारा विश्व चमत्कृत हो जाये।" उन्होंने कहा कि "बीसवीं सदी अति की सदी रही है और यदि महावीर का अनेकान्तवाद सही है, तो हमें कामना करनी चाहिये कि यह सदी अति के अंत की सदी हो। 'अति सर्वत्र वर्जयत' की जरूरत आज सबसे ज्यादा है। यही कारण है कि जैनदर्शन के अनेकान्तवाद का मैं ऋणी हूँ, क्योंकि भारत की बहुलता का दर्शन अनेकान्तवाद में प्राप्त होता है।" उन्होंने काशी के संस्कारों की चर्चा करते हुये कहा कि काशी में मेरे 'अस्सीघाट' स्थित निवास के एक तरफ 'स्याद्वाद विद्यालय' था, तो दूसरी तरफ 'तुलसी घाट'। इन दोनों के बीच रहकर प्राकृत और अपभ्रंश का संस्कार मैंने ग्रहण किया। उन्होंने कहा कि मैं जैन नहीं हूँ और न ही मेरे संस्कारों में दूर-दूर तक जैन-परम्परा है और मेरे बाद मेरे घर में भी प्राकृत पढ़ने-जाननेवाला कोई नहीं है, किन्तु न जाने वह कौन-सा संस्कार है, जिसने मुझे प्राकृत की ओर प्रेरित किया? डॉ. नामवर सिंह ने इसके पीछे अपने पूर्वजन्मों के संस्कार होने की बात कही।
'कुन्दकुन्द भारती न्यास'. और 'जैन मित्र मंडल' द्वारा भगवान् वर्धमान महावीर के 2600वें जन्मकल्याणक-वर्ष के अवसर पर आयोजित 'आचार्य कुन्दकुन्द पुरस्कार' एवं 'आचार्य उमास्वामी पुरस्कार' अर्पण समारोह में प्राकृतभाषा में विशेष-कार्य करने के लिये दिये जाने वाले 'कुन्दकुन्द पुरस्कार' के रूप में डॉ. नामवर सिंह को लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष एवं विपक्ष के उपनेता शिवराज पाटिल ने अंगवस्त्र, भगवान् महावीर का स्वर्ण मंडित लॉकेट, सम्मान पत्र, स्मृति चिह्न एवं एक लाख रुपये की राशि प्रदान की।
संस्कृतभाषा एवं साहित्य-विषयक 'आचार्य उमास्वामी पुरस्कार' से सम्मानित मनीषी प्रो. वाचस्पति उपाध्याय जी ने कहा कि “यह श्रमण-संस्कृति की विशेषता है कि उसने प्राकृत के साथ-साथ संस्कृतभाषा को भी अपनाया, और इसीलिये आचार्य उमास्वामी जैसे विश्वविख्यात आचार्यों ने संस्कृतभाषा में भी साहित्य-सृजन किया। जैन मुनियों एवं विद्वानों की संस्कृत-साहित्य की समृद्धि के लिये महत्त्वपूर्ण देन रही है। मुझे यह कहते हुये हर्ष है कि लाल बहादुर शास्त्री विद्यापीठ में संस्कृत के अध्ययन के साथ-साथ स्वतन्त्र प्राकृतभाषा का विभाग खुला है, तथा मैं हर संभव प्रयत्न करूँगा कि यह विभाग अधिक से अधिक उन्नति करे, और इसमें अच्छी से अच्छी शिक्षा की सुविधायें उपलब्ध हों।" पूज्य आचार्यश्री के प्रति विनम्र कृतज्ञता ज्ञापित करते हुये उन्होंने कहा कि "श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ पूज्य आचार्यश्री की कृपा और आशीर्वाद का ही सुफल है, तथा आज भी यह कुन्दकुन्द भारती की छत्रछाया में प्रगतिपथ पर अग्रसर है।"
संस्कृतभाषा एवं साहित्य में उल्लेखनीय योगदान करने के लिए दिये जाने वाले 'आचार्य उमास्वामी पुरस्कार' के रूप में प्रो. वाचस्पति उपाध्याय को भी अंगवस्त्र, भगवान् महावीर का स्वर्ण मंडित लॉकेट, स्मृति-चिह्न, सम्मान-पत्र एवं एक लाख रुपये की राशि प्रदान की गयी।
इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रेमसिंह ने कहा कि महावीर और गौतम बुद्ध भी साम्यवादी थे, वे एक नये समतामूलक समाज के बारे में सोचते थे इसलिये
प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक
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