________________
पतन-अभ्युदय-बंधुर पंथा, युग-युग धावित यात्री । हे चिर सारथि ! तव रथचक्रे मुखरित पथ दिन - रात्रि । दारुण विप्लव- माझे तव शंख-ध्वनि बाजे,
संकट-दुःख-त्राता । ।
जन-गण- पथ- परिचायक जय हे भारत भाग्य विधाता ! जन-गण-मंगलदायक जय हे भारत भाग्य विधाता ! जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे ।। 3 ।। घोर- तिमिर-घन-निविड़ निशीथे पीड़ित मूर्छित देशे । जाग्रत छल तव अविचल मंगल नतनयने अनिमेषे ।। दुःस्वप्ने आतंके रक्षा करिले अंके,
स्नेहमयी तुमि माता ।।
जन-गण-दुःख- त्रायक जय हे भारत भाग्य विधाता ! जन-गण-मंगलदायक जय हे भारत भाग्य विधाता ! जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे ।। 4 ।। रात्रि प्रभातिल, उदिल रविच्छवि पूर्व-उदयगिरिभालेगाहे विहंगम, पुण्य-समीरण नव-जीवनरस ढाले । तव करुणारुण - रागे निद्रित भारत जागे,
तव चरणे नत माथा । ।
जय जय जय हे, जय राजेश्वर भारत भाग्य विधाता !
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे ।। 5 ।।
-
--
- ( रवीन्द्र रचनावली, पृष्ठ 194, प्रकाशन - पश्चिम बंगाल सरकार, प्रकाशन तिथि 25 वैशाख 1368 बंगला वर्ष )
कतिपय पूर्वाग्रहीजनों ने जार्ज पंचम के भारत आगमन पर उनके 'स्वागत' - हेतु रचित 'विरुद-गान' के रूप में कल्पित कर लांछित करने की चेष्टा की, तो अत्यन्त व्यथित-हृदय से कविवर ने अपना पक्ष प्रस्तुत करते हुए उत्तर दिया
“यह सुनकर (कि 'मैंने सम्राट् जार्ज पंचम के स्वागतगान के रूप में इस गीत की रचना की है' ) मुझे आश्चर्य तो हुआ ही, मन में रोष का भी संचार हुआ । 'शाश्वत मानव- इतिहास के युग-युग-धावित पथिकों के चिरसारथी' कहकर मैं किसी चतुर्थ या पंचम जार्ज की स्तुति कर सकता हूँ. — इसप्रकार की निकृष्टमूढ़ता मेरे मन में होने का जिन्हें सन्देह भी हो सकता है, वैसे लोगों को उत्तर देने में भी मैं अपना अपमान मानता हूँ ।" कविवर टैगोर जी के इस बेवाक स्पष्टीकरण के बाद उक्त अनर्गल - कल्पना का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है। तथा यह तथ्य भी ध्यातव्य है कि सन् 1911 ई. में यह गीत रचा गया था, तथा उसके अगले वर्ष 1912 ई. में जार्ज पंचम भारत आये थे । उनके आगमन
प्राकृतविद्या जनवरी-जून 2002 वैशालिक - महावीर - विशेषांक
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
165
www.jainelibrary.org