Book Title: Prakrit Vidya 02
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 170
________________ Books) में प्रकाशित भारत के सभी शिक्षकों के शोध-कार्यों आदि की मौलिकता तथा विशेषताओं का अध्ययन करती है। पुन: सम्बन्धित विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों से सम्बन्धित शिक्षकों की कार्य-प्रणालियों, शिक्षण-पद्धति, संस्था के संचालन में सहयोग, छात्रों एवं शोधार्थियों के मध्य उनकी छवि आदि की जानकारी प्राप्त करती है। पुन: खुफिया-विभाग तथा पुलिस-विभाग से भी उनके चरित्र की गोपनीय-रिपोर्ट प्राप्त की जाती है। सर्वांगीण जाँच-परख के बाद स्वयं सन्तुष्ट होकर यह प्रवर-समिति सर्वसम्मति से पुरस्कार-हेतु राष्ट्रपति जी के लिए उनके नामों की अनुशंसा करती है। कभी-कभी व्यक्ति सोचता है कि उसके कार्य-कलापों को कोई देखता नहीं; किन्तु बात ऐसी नहीं, शिक्षक किस-किस संस्था से जुड़ा है, किस राजनीति से जुड़ा है, जिस संस्था का वह पदाधिकारी है, उसके मूल-उद्देश्य क्या हैं? उससे उसका व्यक्तित्व विवादास्पद बना है अथवा विवाद-विहीन, — इन सबका लेखा-जोखा व्यक्ति के अनजाने में ही होता रहता है और जब किसी विशिष्ट सम्मान-पुरस्कार प्रदान करने के लिये सूची तैयार होने लगती है, तब उसकी यही छवि निर्णायक-मण्डल के सम्मुख पूर्ण-विवरण के साथ प्रस्तुत की जाती है। मेरा भी यही व्यक्तिगत अनुभव है। लगभग 30-35 वर्ष पूर्व की एक घटना है। मेरा एक छात्र खुफिया-विभाग में नौकरी पा गया। हजारों की जमात में कौन-सा गुरु अपने हजारों शिष्यों को याद रख सकता है? मैं भी उसे भूल ही गया था। एक दिन वह मुझे कहीं रास्ते में मिल गया। उसने आदरपूर्वक मेरे पैर छुए। फिर उसने अपना परिचय दिया और कहा कि “मैं आपका गरीब शिष्य था। जीवन भर आपका अत्यन्त आभारी रहूँगा। आपने एक दिन किसी प्रसंग में अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन और वहाँ के एक नीग्रो जाति के महान् उद्धारक नेता बुकर टेलिफेरो वाशिंगटन तथा बंगाल के ईश्वरचन्द्र विद्यासागर की अत्यन्त गरीबी का उदाहरण देते हुए उनकी आसमानी प्रगति की मार्मिक कहानी अपनी प्राकृत की एक कक्षा में सुनाई थी, और कहा था कि गरीब छात्रों को अपनी गरीबी को कभी भी अभिशाप नहीं मानना चाहिए, वरन् वरदान मानकर दृढ़-संकल्पी बनना चाहिये। आपका यह उपदेश इतना मार्मिक था कि आज भी मैं उसे नहीं भूला और आज आपकी कृपा से मैं अच्छी सर्विस पा सका हूँ। मैं खुफिया-विभाग में हूँ।" __उसका भावभरित कथन सुनकर मैं आश्चर्यचकित रह गया। मैंने उससे पूछा कि "खुफिया-विभाग में हो अवश्य, किन्तु मैं क्या-क्या करता हूँ, उसकी भी तुम्हें कोई जानकारी है? कुछ बता सकते हो कि मैं कब-कब, क्या-क्या करता हूँ?" और मैं उस समय विस्मित हो उठा, जब उसने कहा कि “अन्य लोगों के साथ-साथ वह मेरे विषय में भी सभी जानकारियाँ रखता है।" तात्पर्य यह, कि व्यक्ति स्वयं ही अपने कार्य-कलापों को तो भूल जाता है, किन्तु खुफिया-तन्त्र के खाते में सभी के कार्य-कलाप अंकित होते रहते हैं। ___ अत: किसी भी व्यक्ति को यह नहीं सोचना चाहये कि उनके विवादग्रस्त या विवादविहीन 00 168 प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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