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डॉ. व्हूलर ने जैन-साहित्य के विषय में लिखा है कि- व्याकरण, खगोलशास्त्र और साहित्य की विभिन्न-शाखाओं में जैनाचार्यों की इतनी सेवायें हैं कि उनके विरोधी भी उस ओर आकर्षित हुए। जैनाचार्यों की कुछ रचनायें तो आज यूरोपीय-विज्ञान के लिए भी अधिक महत्त्वपूर्ण हैं।' ____भारतीय-साहित्य में जैनियों की सेवायें अपूर्व हैं, उन्होंने प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, तमिल, तेलगू, कन्नड़, गुजराती, हिन्दी आदि विभिन्न भाषाओं में सभी विधाओं पर लेखनी चलाई।
महावीर के सिद्धान्त के प्रतिपादित करने के लिए तत्कालीन लोक प्रचलित जन-भाषा को आधार बताया गया। जिसे 'आर्ष' कहा पहले और पश्चात् जिसे 'प्राकृत' कहा गया। जिसमें आगम लिखे गये, कर्म ग्रन्थ प्रतिपादित किये गये और उनके आध्यात्मिक मूल्यों की स्थापना के लिये सिद्धान्त ग्रन्थों का प्रणयन हुआ। भास, कालिदास, शूद्रक, राजशेखर आदि ने अपने नाटकों में जिसे विशेष महत्त्व दिया। नाटकों के मूल्यांकन से यह भी ज्ञात हुआ कि राजा, मंत्री जैसे पात्रों को छोड़कर अन्य रानी, सखी, मित्र, विदूषक, बालक-बालिकायें आदि से लेकर जनक्षेत्र से जुड़े हुये आदिवासी बहुल शकरि, भील शबद भी इसी में अपना कथन करते हैं। ___ महावीर के सिद्धान्त पर आगम लिखे गयें, उन पर आचार्यों ने विविध टीकायें लिखीं, नियुक्ति, चूर्णी, भाष्य, टब्बा, हिन्दी, गुजराती एवं अंग्रेजी आदि में विस्तृत विवेचन भी प्रस्तुत किए। उनकी शिक्षाओं और सिद्धान्तों को जन-जन तक पहुँचाने के लिये छोटी-छोटी रचनायें की गईं। सिद्धसेन', हेमचन्द्र जैसे दार्शनिकों ने प्राकृत में दार्शनिक रचनायें दीं। माइल्ल धवल ने महावीर की नयदृष्टि को 'नयचक्र' में प्रस्तुत किया। ___आचार्य कुन्दकुन्द ने तो उनके अध्यात्म-रहस्य को इसतरह प्रतिपादित किया कि उनका चिन्तन जीवन का अंग बन गया। सच कहा जाये तो उनका चिन्तन आत्म-चिंतन है, आत्मानुप्रेक्षी बनाने का है और परमात्मा से सीधे सम्पर्क करने का विशुद्धमार्ग है।
महावीर क्या हैं? यह प्रश्न सिमटकर नहीं रह जाता, अपितु व्यापक बन जाता है। वे इक्ष्वाकुवंश-केशरी हैं, काश्यपगोत्री हैं, लिच्छवि जाति के देदीप्यमान सूर्य हैं, नायपुत्र, ज्ञातृपुत्र, नाथकुल आदि के दिव्यमुकुट हैं। वे तो वर्धमान हैं, वर्धमान थे, वर्धमान ही रहेंगे
और जन-जीवन को वर्धमान बनाते रहेंगे। वे यदि देवाधिदेव हैं, वीतरागी, सर्वज्ञ, तीर्थंकर, सिद्ध-बुद्ध, त्रैलोक्यनाथ, परमेश्वर आदि हैं, तो वे हैं सभी को शरण देनेवाले।
__णाणं सरणं मे दंसणं च सरणं च चरिय-सरणं च।
तव-संजमं च सरणं भगवं सरणं महावीरो।। यदि मेरे लिये ज्ञान शरण है, दर्शन शरण है, चरित्र शरण है, तप शरण है और संयम शरण है, तो भगवान् महावीर भी शरणभूत हैं। __ महावीर की जीवन-गाथा विशुद्धात्मा की है, महामना बनाने और परमात्म-अवस्था
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प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक
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