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नारी-जागरण के क्षेत्र में भगवान्महावीर कायोगदान
—प्रो. डॉ. (श्रीमती) विद्यावती जैन
आज हम सभी भूमण्डलीकरण के युग में जीवन-यापन कर रहे हैं। सूचना-तकनीकी (Information Technology) के कारण आज सारा विश्व एक छोटे-से दायरे में सिमटसा गया है। ऐसे समय में नारी-चेतना और नारी-विकास की दिशा में भी आमूल-चूल परिवर्तन हुआ है। कल तक घर की चार-दीवारी में बन्द रहनेवाली नारियाँ आज पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर कार्य कर रही है। चाहे यह प्रशासन का क्षेत्र हो, न्यायालयों का क्षेत्र हो, अथवा राजनीति या शिक्षण-प्रशिक्षण का या सामाजिक-सेवा का, कोई भी कार्य-क्षेत्र उनसे अछूता नहीं बचा है। असम्भव से असम्भव-कार्यों की बागडोर भी उन्होंने सम्भाल लेने का साहस बटोर लिया है। नारी-चेतना का यह रूप अनायास ही प्रस्फुटित नहीं हुआ है, बल्कि आज से 2600 वर्ष पूर्व भगवान् महावीर ने भगवान् ऋषभदेव की क्रमागत-परम्परा के अनुसार नारी-जागरण और नारी-स्वतन्त्रता की जो ज्योति जगाई थी, उसी का यह प्रस्फुटन है।
जैन-संस्कृति में नारियों को निरन्तर ही गरिमापूर्ण-स्थान प्राप्त रहा है। उनकी स्वतन्त्रता मात्र सैद्धान्तिक न होकर व्यावहारिक भी रही है। यदि प्राचीन जैन-साहित्य पर दृष्टि डाली जाये, तो आद्य-तीर्थंकर ऋषभदेव ने अपने पुत्रों के साथ-साथ अपनी पुत्रियोंब्राह्मी एवं सुन्दरी को भी समानरूप से शिक्षा प्रदान की थी, जिसके आधार पर उन्होंने ज्ञान-विज्ञान और कला के क्षेत्र में प्रगति कर अपनी प्रतिभा से सभी को आश्चर्यचकित कर दिया था। राजकुमारी ब्राह्मी के नाम पर ही विश्वप्रसिद्ध प्राचीन-लिपि का नामकरण भी ब्राह्मी-लिपि किया गया, जिसमें सम्राट अशोक, कलिंगाधिपति जैन-सम्राट् खारवेल तथा परवर्ती अनेक शासकों के धर्मलेख उपलब्ध हैं।
पूर्वकाल में सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक क्षेत्रों में भी पुत्र और पुत्री में कोई भेदभाव नहीं था; किन्तु काल के दुष्प्रभाव से भगवान् महावीर का युग आते-आते पुरुषों की मनोदशा में बहुत-परिवर्तन आ गया उनके काल में नारी की दशा अत्यन्त-शोचनीय हो गई थी। उसे एक तुच्छ-दासी के समान समझा जाने लगा था। खुलेआम उसका क्रय-विक्रय किया जाने लगा था। उसके अधिकारों की अवहेलना की जा रही थी। उसे शिक्षा से भी वंचित
प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक
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