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अपनी समृद्धि पर थे; तो दूसरी ओर मगध, वत्स, कौशल, आदि राजतन्त्र भी अपनी यशस्विता के शिखर पर पहुँच रहे थे। वज्जिसंघ' की स्थापना कई गणराज्यों ने मिलकर की थी।
वैशाली की संघीय-व्यवस्था बहुत कुछ प्रजातन्त्रात्मक थी। जनता अपना मत देने और मनवाने के लिए स्वतन्त्र होती थी। मत देने की एक पद्धति थी। शासक की सर्वोच्च-सत्ता केन्द्रीय समिति के अधीन रहती थी। विभिन्न-गणराज्यों में केन्द्रीय समिति की सदस्य-संख्या भिन्न-भिन्न थी। यौधेयों की समिति में पाँच सहस्र और लिच्छवि-संघ में सदस्यों की संख्या सात हजार सात सौ सात थी। समिति का संगठन 'संथागार' में किया जाता था। लिच्छवि राजाओं के संथागार में प्रवेश करते ही गगनभेदी नारों से वैशाली गुंजायमान हो उठती थी। सबके अपने अलग-अलग पद और अधिकार थे। सभी एक अनुशासन में आबद्ध थे। अपने नियत-स्थान और निश्चित-कार्य के प्रति सभी सजग तथा सावधान रहते थे।
गणराज्य की शासन-व्यवस्था में मन्त्रियों की संख्या निश्चित नहीं थी। केन्द्रीय-समिति से निर्देशित एवं अनुमोदित मन्त्रियों की संख्या सामान्यत: चार से लेकर बीस तक होती थी। लिच्छवि-विदेह की राज्य-परिषद् में सदस्यों की संख्या अट्ठारह थी। मल्लों की मन्त्रि-परिषद् में केवल चार ही मन्त्री थे, जबकि लिच्छवियों की मन्त्रि-परिषद् में नौ सदस्य थे। गणराज्य में स्वायत्त-शासन को महत्त्व दिया जाता था। उसमें न्याय-व्यवस्था पर्याप्त संगठित थी।
शासन-व्यवस्था को सुचारुरूप से संचालित करने के लिए प्राय: वैशाली के संथागार में संघ को आमन्त्रित किया जाता था, बैठक बुलाई जाती थी। संघ में विचार करने के लिए प्रस्तुत किए जाने वाले प्रस्तावों पर सदस्यों की स्वीकृति आवश्यक मानी जाती थी। सदस्यों की न्यूनतम उपस्थिति-संख्या निर्धारित थी। सदस्यों की गणना का कार्य गणपूरक देखता था। वह निश्चित संकेतों से सबको अवगत कराता था। सदस्यों की संख्या नियत से कम होने पर विषय-प्रस्ताव अगली बैठक तक के लिए स्थगित हो जाते थे। सदस्य प्राय: अपनी स्वीकृति मौन होकर प्रदान करते थे। विरोध प्रकट करने के लिए सदस्य को बोलना पड़ता था। यदि किसी कारणवश कोई सदस्य संघ की बैठक में उपस्थित नहीं हो पाता था, तो उसका मत प्राप्त करने की व्यवस्था थी। मत का संग्रह सामान्यरूप से शलाका के प्रयोग के रूप में किया जाता था। शलाका का ग्रहण तीन तरह से होता था—गुप्तरूप से, धीरे से कान में कहकर और छन्द (वोट) प्रदान कर। यदि समिति किसी निर्णय को लेने में असमर्थ रहती थी, तो उसका निर्णय संघ में किया जाता था। इसप्रकार एक सुन्दर संघ-प्रणाली वैशाली में प्रचलित थी।.. . एक बार रात्रि के अन्तिम प्रहर से ही वैशाली रत्नप्रभाओं से आलोकित हो रही थी। स्थान-स्थान पर प्रकाश की प्रभा विकीर्ण हो रही थी। सौन्दर्य के अपूर्व विग्रह में मानों कामदेव ने अवतार लिया हो। अग-जग के आनन में प्रफुल्लता और उत्साह लक्षित हो रहा
प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक
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