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ग्रामों का परिचय मिलता है
(1) कुण्डग्राम – इस नाम के दो ग्राम थे। एक का नाम 'ब्राह्मणकुण्डग्राम' या 'कृण्डपुर' था, जिसमें ब्राह्मणों की ही विशेषरूप से बस्ती थी। दूसरे का नाम 'क्षत्रियकुण्डग्राम' था, जिसमें क्षत्रियों का ही प्रधानतया निवास था। इनमें दोनों क्रमश: एक-दूसरे के पूर्व-पश्चिम में थे। ये दोनों पास ही पास थे। दोनों के बीच में एक बड़ा बगीचा था, जो 'बहुसाल-चैत्य' के नाम से विख्यात था। दोनों नगरों के दो-दो खण्ड थे। 'ब्राह्मणकण्डपुर' का दक्षिणभाग 'ब्रह्मपुरी' कहलाता था, क्योंकि यहाँ ब्राह्मणों का ही निवास था। दक्षिण 'ब्राह्मणकण्डपुर' के नायक ऋषभदत्त' नामक ब्राह्मण थे, जिनकी भार्या का नाम देवानन्द' था। ये दोनों पार्श्वनाथ के साथ स्थापित जैनधर्म के माननेवाले गृहस्थ थे। 'क्षत्रिय-कुण्डग्राम' के भी दो विभाग थे। इसमें करीब पाँच सौ घर 'ज्ञाति' नामक क्षत्रियों के थे, जो उत्तरी-भाग में जाकर बसे हुये थे। उत्तर- क्षत्रियकुण्डपुर के नायक का नाम 'सिद्धार्थ' था। ये काश्यपगोत्रीय ज्ञातिक्षत्रिय थे, तथा 'राजा' की उपाधिं से मण्डित थे। वैशाली के तत्कालीन राजा का नाम था 'चेटक', जिनकी बहन 'त्रिशला' का विवाह सिद्धार्थ से हुआ था। इन्हीं त्रिशला और सिद्धार्थ के वर्धमान' थे, जिनका जन्म इसी ग्राम में हुआ था।
(2) कर्मारग्राम – प्राकृत कम्मार' कर्मकार का अपभ्रंश है। अत: 'कर्मार' का अर्थ है – मजदूरों का गाँव, अर्थात् लोहारों का गाँव । यह गाँव भी कुण्डग्राम के पास ही था। महावीर प्रव्रज्या लेकर पहली रात को यहीं ठहरे हुये थे।
(3) कोल्लाक संनिवेया – यह स्थान पूर्वनिर्दिष्ट ग्राम के समीप ही था। यह नगर वाणिज्यग्राम (जिसका वर्णन नीचे है) के तथा उस बगीचे के बीच में पड़ता था।
(4) वाणिज्यग्राम – यह जैनसूत्रों का वाणिज्यग्राम' बनियों का गाँव है। गण्डकी नदी के दाहिनी किनारे पर यह बड़ी भारी व्यापारी-मण्डी थी। जान पड़ता है, कि यहाँ बड़े-बड़े धनाढ्य-महाजनों की बस्ती थी। यहाँ के एक करोड़पति का नाम आनन्द-गाथापति' था, जो महावीर के बड़े भक्त-सेवक थे। आजकल की वैशाली (मुजफ्फरपुर जिले की बसाढ़पट्टी) के पास बनिया-ग्राम है। सम्भव है कि यह गाँव वाणिज्यग्राम' का ही प्रतिनिधि हो। ___ बौद्धग्रन्थों के विशेषतया दीघनिकाय' के अनुशीलन से पता चलता है कि बुद्ध के समय में वैशाली बड़ी समृद्धिशालिनी-नगरी थी। उसमें 7 हजार 7 सौ 77 महलों के होने का उल्लेख स्पष्टत: उसे विशाल तथा समृद्ध-नगर बतला रहा है। नगर के भीतर 'अम्बपाली' नामक बड़ी ही धनाढ्य और गुणवती गणिका रहती थी। 6 या 7 बड़े-बड़े चैत्यों के नाम मिलते हैं, जहाँ महात्मा बुद्ध ने अपना चातुर्मास बिताया। इसके पास ही वेणुग्राम' का उल्लेख मिलता है, जहाँ बुद्ध ने वर्षा में निवास किया था। इस वर्णन से स्पष्ट है कि वैशाली बड़ी नगरी थी, जिसके उपनगर अनेक थे, तथा उस समय खूब प्रसिद्ध थे।
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प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक
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