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लिच्छवि
ईस्वी सन् से पूर्व सातवीं शताब्दी के लगभग गंगा के उत्तर-कूल पर लिच्छवियों का एक समर्थ-प्रदेश-सत्तात्मक-राज्य था, जिसके पूर्व में वन्य-प्रदेश, पश्चिम में कौशल-देश और कुसीनारा तथा पावा, जो मल्लों के गणराज्य थे। दक्षिण में गंगा के उस पार मगध-साम्राज्य था। उत्तर में हिमालय की तलहटी में आया हुआ वन्य-प्रदेश था। इस राज्य की राजधानी वैशाली' थी।
लिच्छवियों की परम्परा के सम्बन्ध में अनेक मत हैं, कुछ लोग उन्हें इक्ष्वाकु सूर्यवंशियों का वंशज कहते हैं। बौद्ध-ग्रन्थों में लिच्छवियों को बुद्ध आदि ने 'वसिष्ठ' कह कर सम्बोधित किया है। वसिष्ठ सूर्यवंशी इक्ष्वाकुओं के कुल-गुरु थे। नेपाल की वंशावली में भी उन्हें सूर्यवंशी कहा है, किन्तु स्मृतियाँ उन्हें व्रात्य-संकर बताती है। ___ जैनग्रन्थों में लिच्छवियों के सम्बन्ध में कोई स्पष्ट बात नहीं कही गई। यद्यपि जैनधर्म के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर श्रमण लिच्छिविकुल में उत्पन्न हुए थे। जैनग्रन्थों के आधार पर महावीर श्रमण की माता वैशाली के गण-प्रमुख राजा की बहिन कही गई हैं, परन्तु महावीर श्रमण को जैनग्रन्थों में लिच्छवि न कह कर ज्ञातिपुत्र', 'विदेहदत्ता' का पुत्र', 'विदेह का राजकुमार', 'वैशालिक', 'ज्ञातृ-क्षत्रिय' आदि के नामों से पुकारा जाता है।
यह बात विचारणीय है कि जैन-बौद्ध धर्मोदय के पूर्व अर्थात् जैन-बौद्ध धर्मोदय के पूर्व अर्थात् ईसामसीह से पूर्व 5वीं 6वीं शताब्दी से उधर के किसी प्राचीन हिन्दू-ग्रन्थ में लिच्छवियों का कोई उल्लेख नहीं है, परन्तु उनके पड़ौसी मल्लों का उल्लेख 'महाभारत' में पाण्डवों के समकालीन के रूप में आया है।
यह कहा जाता है कि वैशाली का गणराज्य विदेह-राज्य के भंग होने पर संगठित हुआ। जैन और बौद्ध धर्मोदय से पूर्व के उपनिषद्-काल में विदेहराज जनक की कीर्ति और ठाट-बाट का खूब बढ़ा-चढ़ा वर्णन और भारी यशोगाथा है।
_ 'मज्झिमनिकाय' के 'मखादेवसुत्त' के आधार पर निमि' के पुत्र 'कलार' के समय में विदेह-राजवंश का अन्त हुआ। कौटिल्य अर्थशास्त्र' के आधार पर विदेह के राजा कराल ने एक ब्राह्मण-कुमारी के ऊपर अत्याचार किया था, इसी से राजा और राज्य का नाश हो गया। विदेहराज की समृद्ध के विषय में कहा गया है कि इस राज्य का विस्तार था और उसमें सोलह हजार गाँव लगते थे।
बुद्ध ने लिच्छवियों की प्रशंसा करते हुए कहा था
“हे भिक्षुओ ! आज लिच्छवि प्रमादरहित और वीर्यवान् होकर व्यायाम करते हैं, इससे मगध का राजा उनके मर्म को समझकर उन पर चढ़ाई करते हुए डरता है। हे भिक्षुओ ! भविष्य में लिच्छवि सुकुमार हो जायेंगे और उनके हाथ पैर कोमल और सुकुमार बन जायेंगे। वे आज लकड़ी के तख्त पर सोते हैं, फिर वे रुई के गद्दों पर सूर्योदय होने तक
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प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक
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