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वैशाली के राजकुमार
-डॉ. देवेन्द्र
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कुमार
भगवान् महावीर के 2500 वें परिनिर्वाण - महोत्सव के सुअवसर पर भगवान् महावीर के सम्बन्ध में बहुआयामी दृष्टि से अनेकों विधाओं में साहित्य-सृजन किया गया था । उसी प्रसंग में कहानीपरक पुस्तकें भी प्राचीन आगम-ग्रन्थों के आधार पर जैनसमाज के प्रतिष्ठित विद्वानों ने तब लिखी थीं । ऐसे ही एक मनीषी की कथात्मकक- कृति से यह अंश यहाँ प्रस्तुत है, जिसमें भगवान् महावीर और उनकी जन्मभूमि के बारे में प्ररूपण किया गया है। - सम्पादक
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शास्त्री
शासन उन दिनों भारत के पूर्वीय क्षेत्रों में 'तन्त्र' तथा 'विग्रह' की प्रयोग - भूमि बन रहे थे । कहीं गणतन्त्रों के रूप में राज्य विकसित हो रहे थे, तो कहीं अनेक एकतन्त्री राजवंश अपना-अपना मस्तक ऊँचा करने में लगे हुए थे। कहीं छोटे-छोटे राज्य हिंसा तथा विग्रह की अग्नि में झुलस रहे थे। वे एक-दूसरे को अपने-अपने अधिकार में लेने के लिए सतत सचेष्ट रहते थे। पराजय तथा अपमान की चिनगारियाँ प्राय: बरसने के लिए कोई-न-कोई अवसर की प्रतीक्षा में रहती थीं। इसलिये छोटी-छोटी बातों को लेकर प्राय: युद्ध भड़क जाया करते थे। एकतन्त्री-राजवंशों में तनाव बना रहता था । सामंजस्य की कोई भूमिका ही नहीं थी ।
वैशाली का गणतन्त्र अपने युग में सबसे अधिक प्रसिद्ध था। उसकी गौरव-गरिमा सागर के उस पार सुदूर पारस्य, मिस्र, चीन और यवन - देशों तक फैल चुकी थी । दूर - देशान्तरों के जलपोत 'ताम्रलिप्ति पत्तन' पर आकर रुकते थे, जिनमें विश्व के अनेक भागों के बहुमूल्य वस्तु-स् - सम्पदा वैशाली की पण्यय-वीथियों में बिकने के लिए आती थी । वैशाली की आपणों (दुकानों) पर संसार की प्रत्येक वस्तु बिक्री के लिए आती रहती थी। सभी प्रकार के पारखी और अभिरुचि के लोग वहाँ निवास करते थे । देश में उस समय छोटे-बड़े या 'संघराज्य' भी कहते थे। वैशाली मल्ल, लिच्छवी, वज्जी, एवं ज्ञातृ आदि आठ - गणतन्त्रों का एक संयुक्त संघ था, जिसे 'वज्जिसंघ' या 'लिच्छवी संघ' भी कहा गया है । वज्जिसंघ की राजधानी 'वैशाली' थी ।
भारतीय पूर्व-अंचल में एक ओर मल्ल, लिच्छवी तथा शाक्य एवं यौधेय आदि गणतन्त्र
प्राकृतविद्या जनवरी-जून 2002 वैशालिक - महावीर-विशेषांक
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