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कहा जाता था। संघ से तीन-चार बार पूछा जाता था कि क्या संघ प्रस्ताव से सहमत है। संघ के मौन का अर्थ सहमति या स्वीकृति समझा जाता था। बहुमत द्वारा स्वीकृत निर्णय को 'ये भुय्यसिकम्' (बहुमन की इच्छानुसार) कहा जाता था। मतपत्रों को 'शलाका' तथा मत-पत्र-गणक को शलाका-ग्राहक' कहा जाता था। अप्रासंगिक तथा अनर्थक-भाषणों की भी शिकायत की जाती थी।
श्री जायसवाल के मतानुसार, “सुदूर अतीत (छठी शताब्दी ई०पू०) से गृहीत इस विचारधारा से 'एक उच्चत: विकसित-अवस्था की विशेषतायें दृष्टिगोचर होती हैं। इसमें भाषा की पारिभाषिकता एवं औपचारिकता विधि एवं संविधान की अन्तर्निहित धारणायें उच्च-स्तर को प्रतीत होती हैं। इसमें शताब्दियों से प्राप्त पूर्व-अनुभव भी सिद्ध होता है। ज्ञप्ति, प्रतिज्ञा, गण-पूरक, शलाका, बहुमत-प्रणाली आदि शब्दों का उल्लेख, किसी प्रकार की परिभाषा के बिना किया गया है, जिससे इनका पूर्व-प्रचलन सिद्ध होता है।" वैशाली-गणतन्त्र का अन्त : __मगधराज अजातशत्रु का आक्रमण वैशाली-गणतन्त्र पर घातक-प्रहार था। अजातशत्रु की माता चेलना वैशाली के गणराजा चेटक की पुत्री थी, तथापि साम्राज्य-विस्तार की उसकी आकांक्षा ने वैशाली का अन्त कर दिया। बुद्ध से भेंट के बाद मन्त्री वस्सकार को अजातशत्रु द्वारा वैशाली में भेजा गया। वह मन्त्री वैशाली के लोगों में मिलकर रहा और उसने उसमें फूट के बीज बो दिए। व्यक्तिगत-महत्त्वाकांक्षाओं तथा फूट से इतने महान् गणराज्य का विनाश हुआ। 'महाभारत' में भी गणतन्त्रों के विनाश के लिए ऐसे ही कारण बताये हैं। भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर से कहा, 'हे राजन् ! हे भरतर्षभ ! गणों एवं राजकुलों में शत्रुता की उत्पत्ति के मूलकारण हैं—लोभ एवं ईर्ष्या-द्वेष । कोई (गण या कुल) लोभ के वशीभूत होता है, तब ईर्ष्या का जन्म होता है और इन दोनों के मेल से पारस्परिक विनाश होता है।"
वैशाली पर आक्रमण के अनेक कारण बताये गये हैं। एक जैन-कथानक के अनुसार, सेयागम (सेचानक) नामक हाथी द्वारा पहना गया 18 शृंखलाओं का हार इसका मूलकारण था। बिम्बसार ने इसे अपने एक पुत्र वेहल्ल को दिया था, परन्तु अजातशत्रु इसे हड़पना चाहता था। वेहल्ल हाथी और हार के साथ अपने नाना चेटक के पास भाग गया। कुछ लोगों के अनुसार, रत्नों की एक खान ने अजातशत्रु को आक्रमण के लिए ललचाया। यह भी कहा जाता है कि मगध-साम्राज्य तथा वैशाली-गणराज्य की सीमा गंगा-तट पर चुंगी के विभाजन के प्रश्न पर झगड़ा हो गया। अस्तु, जो भी कारण हो; इतना निश्चित है कि अजातशत्रु ने इसके लिए बहुत समय से बड़ी तैयारियाँ की थीं। सर्वप्रथम उसने गंगा-तट पर पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) की स्थापना की। जैन-विवरणों के अनुसार, यह युद्ध सोलह वर्षों तक चला, अन्त में वैशाली-गणतन्त्र मगध-साम्राज्य का अंग बन गया।
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प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक For Private & Personal Use Only
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