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उसके पश्चात् आचार्य गुणभद्र ने 'उत्तरपुराण' 74-251 तथा 74-252 में
भरतेऽस्मिन् विदेहाख्ये, विषये भवनांगणे।
- राज्ञ: कुंडपुरेशस्य वसुधारा पतत्पृथुः ।। अर्थात् भरतक्षेत्र के विदेहदेश में कुण्डपुर के महाराज सिद्धार्थ के भवन के आंगन में रत्नवर्षा हुईं वहाँ नंद्यावर्त सप्तखंड महल था। भगवान् के गर्भ में आने के पूर्व से देवों द्वारा रत्नवर्षा की जाती है। पाँचवीं शताब्दी के आचार्य पूज्यपाद की. 'निर्वाण-भक्ति' में लिखा है- सिद्धार्थ नृपति तनयो भारतवास्ये विदेहकुंडपुरे ।
देव्यां प्रियकारिण्यां सुस्वप्नान् संप्रदर्श्य विभुः।। 4 ।। अर्थात् महाराज सिद्धार्थ के सुपुत्र महावीर ने भारत के विदेहस्थ कुण्डपुर में सोलह स्वप्न के पश्चात् देवी प्रियकारिणी के गर्भ से चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को जन्म लिया।
इसीप्रकार 9वीं शती के हरिवंशपुराण' 2/1 व 2/5 में आचार्य जिनसेन ने लिखा है कि भारत के विदेह देशस्थ कुण्डपुर स्वर्ग की शोभा को धारण करते हुए सुखरूप जलकुंड सोपान है। ____ कुण्डलपुर 20 मील की लम्बाई-चौड़ाई में बसा हुआ था, जिसने चीनी यात्री हयुएन्सांग ने देखा था कि यह बड़ा सरसब्ज विविध सुन्दर वृक्षों और महलों से समृद्ध था। इस नगर की आर्थिक स्थिति कृषि होने से सन्तोषजनक थी। अन्नोत्पादन खूब होता था। प्रजा का सानंद जीवनयापन होता था, मजदूरी का रिवाज नहीं था। प्रजा में अमीर और गरीब का कोई खास भेद नहीं था। सामाजिक व्यवस्था सन्तोषप्रद थी। ___ वर्धमान चरित' के रचयिता महाकवि असग के अनुसार कुण्डपुर सभी प्रकार की वस्तुओं से युक्त परकोटा, खातिका, वापिका एवं वाटिकाओं से परिपूर्ण था। यहाँ के ऊँचे भवन और रत्नजटित गोपुर अपनी रमणीयता से पथिकों के मन को मुग्ध कर लेते थे। धनधान्य एवं पशुधन से सहित वह नगर प्रजाजनों को आनंदप्रद था।
आचार्य जिनसेन (प्रथम) ने विदेह के कुण्डपुर का वर्णन किया है। उन्होंने नगर की शोभा के संबंध में लिखा है कि वहाँ शरद के मेघ सदृश उन्नत भवनों से आकाश भी श्वेत होकर शोभित होता है। वह नगरी चारों ओरसे कोट एवं खातिका से वेष्टित है। वहाँ के प्रमुख इक्ष्वाकुवंशीय क्षत्रिय-शासक प्रजा के संरक्षण में सदा तत्पर रहते हैं। नगर का आयाम कई मील विस्तृत है।
महाराज सिद्धार्थ वैभव सम्पन्न प्रसिद्ध पुरुष थे, इसीलिए चेटक महाराज ने अपनी सबसे बड़ी विदुषी पुत्री त्रिशला (प्रियकारिणी) का भगवान् महावीर के पिता सिद्धार्थ से विवाह संबंध कर अपना सौभाग्य माना था। ___'अवसर्पिणी युग' का चतुर्थ काल होने से वैमानिक देव, सौधर्म आदि इन्द्र, भगवान् के गर्भ, जन्म आदि कल्याणक समारोहपूर्वक मनाते थे।
प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक
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