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वर्द्धमान और वैशाली : संस्कृत-साहित्य के सन्दर्भ में
-डॉ. जयदेव मिश्र
भगवान् महावीर की जन्मभूमि के विषय में सम्पूर्ण भारतीय वाङ्मय में अनेकत्र उल्लेख प्राप्त होते हैं। चूँकि भगवान् महावीर न केवल जैनों के चौबीसवें तीर्थंकर थे, बल्कि आधुनिक इतिहास की दृष्टि से भी वे ऐतिहासिक महापुरुष हैं। प्रस्तुत आलेख में विद्वान् लेखक ने संस्कृत-साहित्य के सन्दर्भ में भगवान् महावीर के बारे में विशद-रीति से | ऐतिहासिक अनुशीलन प्रस्तुत किया है।
–सम्पादक
___संस्कृत-साहित्य प्राचीन भारतीय परम्परा का प्रमुख साधन-स्रोत है। इसमें वैशाली और वर्द्धमान महावीर से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्षरूप से सम्बन्धित अनेक साक्ष्य भरे पड़े हैं। यद्यपि जैनधर्मावलम्बियों ने लोकभाषा 'प्राकृत' को अपना माध्यम बनाया; तथापि संस्कृत की महत्ता को देखते हुए एवं अर्न्तराष्ट्रीयता प्राप्त करने के लिये उसे अपनाना पड़ा। संस्कृत महाकाव्यों, पुराणों, लघुकाव्यों, सुभाषितों, कथा-साहित्यों तथा रूपकात्मक-प्रबन्धों में वैशाली और जैनधर्म तथा महावीर विद्यमान हैं। ... 'वाल्मीकि रामायण' में वैशाली वैशाला' या 'उत्तमपुरी' के नाम से वर्णित है। पूर्वकाल में महाराज इक्ष्वाक के एक परम-धर्मात्मा पुत्र थे, जो 'विशाल' नाम से प्रसिद्ध हुए। उनका जन्म ‘अलम्बुषा' के गर्भ से हुआ था। उन्होंने इस स्थान पर विशाला' नाम की पुरी बसायी थी।
इक्ष्वाकोस्तु नरव्याघ्र पुन: परमधार्मिकः । अलम्बुषायामुत्पन्नो विशाल इति विश्रुत: ।
तेन चासीदिह स्थाने विशालेति पुरी कृता।। 'रामायण' में ही विशाला के नाम से इसका और इसके संस्थापक तथा उसके वंशजों की वंशावली मिलती है। विशाल' से लेकर रामचन्द्र के समकालीन विशाला-नरेश 'सुमति' तक की वंशावली इसप्रकार है :____ 1. विशाल, 2. हेमचन्द्र, 3. सुचन्द्र, 4. धूम्राश्व, 5. सृञ्जय, 6. सहदेव, 7. कुशाश्व, 8. सोमदत्त, 9. काकुलस्थ और 10. सुमति ।
विशाला-नरेशों के सम्बन्ध में महर्षि विश्वामित्र ने यह कहा है कि “वे सब इक्ष्वाकु की
प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक
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