Book Title: Prakrit Vidya 02
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

View full book text
Previous | Next

Page 54
________________ बीता, यौवन बीता। अपने घरवालों से अनुमति लेकर यहीं उन्होंने दीक्षा ग्रहण की। अपने छद्मस्थ तथा केवली-काल का भी कुछ समय भगवान् ने यहीं बिताया। वैशाली के राजा चेटक का सम्बन्ध उस समय के प्राय: सभी प्रमुख राजाओं से था। चेटक की बहन त्रिशला का विवाह कुण्डपुर' के राजा सिद्धार्थ से हुआ था। वे ही भगवान् महावीर की माता थीं। मुझे इस बात का दुःख है कि अभी जैन-समाज अपने कर्तव्य-निर्वाह में पीछे है। इसका एक कारण उनकी अज्ञानता और प्रचार की कमी है। पर यदि समृद्ध और पढ़ा-लिखा समाज भगवान के जन्म-कल्याण की पवित्र-भूमि पर मन्दिर-निर्माण करा दे, तो निश्चय ही तीर्थयात्री भी यहाँ दर्शन-पूजन के लिये आने लगे और विस्मत-तीर्थ अपने योग्य-गौरव को प्राप्त कर ले।" डॉ. बी.सी. लॉ ने एक लेख में लिखा है : "Mahavira is spoken as Vesalie or Vaisalika an inhabitant of Vaisali. Abhayadeva in his commentry on the Bhagawatisutra explains Vaisalika by Mahavira and speaks of visala as Mahavira. The Venerable ascetic Mahavira, a Videha, son of Videha-datta, native of Videha, a prince of Videha had lived 30 years in Videha, the capital of which was Vaisali, when his parents died. During his later ascetic life Mahavira did not neglect the city of his birth and out of forty two rainy seasons during this period of his life he passed no less than twelve at Vaisali." __ आचार्य बलदेव उपाध्याय ने वैशाली को 'युगान्तरकारिणी नगरी' की संज्ञा दी है। इसे ही जैनधर्म के संशोधक तथा प्रचारक महावीर वर्द्धमान की जन्मभूमि होने का विशेष गौरव प्राप्त है। उन्होंने लिखा है कि वैशाली में अनेक विभूतियाँ उत्पन्न हुई, परन्तु उनमें सबसे सुन्दर विभूति है— भगवान् महावीर, जिसकी प्रभा आज भी भारत को चमत्कृत कर रही है। लौकिक विभूतियाँ भूतलशायिनी बन गईं, परन्तु यह दिव्यविभूति आज भी अमर है और आनेवाली अनेक शताब्दियों में अपनी शोभा का इसीप्रकार विस्तार करती रहेंगी। महावीर गौतम बुद्ध के समसामयिक थे, परन्तु बुद्ध के निर्वाण से पहले ही उनका अवसान हो गया था। इसप्रकार वैदिक-धर्म से पृथक् धर्मों के संस्थापकों में महावीर वर्द्धमान प्रथम माने जा सकते हैं और इनकी जन्मभूमि होने से वैशाली की पर्याप्त-प्रतिष्ठा है। प्रसिद्ध इतिहासविद् साहित्यरत्न प्रो. योगेन्द्र मिश्र ने अपने लेख में अनेक साक्ष्यों के आधार पर वैशाली को महावीर की जन्मस्थली माना है। उनके अनुसार आज भी वैशाली के लोग वैशाली के पास स्थित 'वासुकुण्ड' को 'महावीर की जन्मभूमि' के रूप में मानते हैं। सन् 1960 ई. में 'सोहलवें वैशाली-महोत्सव' के अवसर पर अपने उद्गार व्यक्त करते हुए डॉ. सम्पूर्णानन्द ने कहा था- वैशाली की ख्याति एक प्रबल-राज्य का मुख्य-स्थान होने के कारण नहीं है, वरन् इसलिए कि वह इस देश के धार्मिक इतिहास में अपना विशेष-स्थान रखती है। जैनधर्म के चौबीसवें तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर का जन्म यहीं हुआ। उनकी दृष्टि 0052 प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

Loading...

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220