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वस्तुतः महाप्रत्याख्यान हमारे सामने एक ऐसी अनासक्त जीवन दृष्टि प्रस्तुत करता है जिससे हमारा जन्म और मरण दोनों ही सार्थक बन जाते हैं। महाप्रत्याख्यान की इस जीवन दृष्टि को हम संक्षेप में इस प्रकार रख सकते हैं
लाई हयात आ गए, कजा ले चली चले चले।
न अपनी खुशी आए, न अपनी खुशी गए॥ इस प्रकार हम देखते हैं कि महाप्रत्याख्यान एक ऐसा ग्रंथ है जो हमें जीवन जीने की नवीन दृष्टि प्रदान करता है। ऐसे उदात्त जीवन मूल्यों को प्रतिपादित करने वाले प्रकीर्णक साहित्य को आगम, अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर ने सानुवाद प्रकाशित करने का जो निर्णय किया है उसकी सार्थकता तभी है जब इन प्रकीर्णकों का अध्ययन करके हम इनमें प्रतिपादित जीवन मूल्यों को अपने जीवन में उतार सकें।
12 दिसंबर, 1991
सागरमल जैन सहयोगः सुरेश सिसोदिया