Book Title: Prakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith
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(12) (i) गोटे पाओवगओ सुबंधुणा गोमए पलिवियम्मि। डझंतो चाणक्को पडिवन्नो उत्तमं अट्ठ॥
(भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, गाथा 162) (12) (ii) गोब्बर पाओवगओ सुबुद्धिणा निग्धिणेण चाणक्को। दड्ढो न य संचलिओ, सा हु धिई चिंतणिज्जा उ॥
(मरणविभक्ति प्रकीर्णक, गाथा 479) (12) (iii) गोठे पाओवगदो सुबंधुणा गोच्चरे पलिवदम्मि। डझंतो चाणक्को पडिवण्णो उत्तमं अटुं॥
(भगवती आराधना, गाथा 1551) (12) (iv) चाणक्याख्यो मुनिस्तत्र शिष्यपञ्चशतैः सह।
पादोपगमनं कृत्वा शुक्लध्यानमुपेयिवान् ॥ उपसर्ग सहित्वेमं सुबन्धुविहितं तदा।
समाधिमरणं प्राप्य चाणक्यः सिद्धिमीयिवान् ॥ (चाणक्यमुनि कथानक; बृहत्कथाकोश, कथा 143, श्लोक 83-84)
(13) (i)
काइंदि अभयघोसो वि चंडवेगेण छिण्ण सव्वंगो। तं वेयणमधियासिय पडिवण्णो उत्तमं अटुं॥
(भगवती आराधना, गाथा 1545)
(13) (ii) आसीदभयघोषाख्यः काकन्धाख्यपुरीभवः। ...
... चण्डवेगाभिधानेन तत्पुत्रेणास्य कोपतः। पूर्ववैरेण संछिन्नं हस्तपादचतुष्टयम् ॥ सहित्वाऽभयघोषोऽपि चण्डवेगोपसर्गकम्।
केवलज्ञानमुत्पाद्य प्रयया मोक्षमक्षयम् ॥ (अभयघोष मुनि कथानक ; बृहत्कथाकोश, कथा 137, श्लोक 1-12)
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