Book Title: Prakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 336
________________ 330 (18) आसी गयसुकुमालो अल्लयचम्मं व कीलयसएहिं। धरणियले उव्विद्धो तेण वि आराहियं मरणं॥ (संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 86) (19) धीरपुरिस पण्णत्तं सप्पुरिसनिसेवियं परमघोरं । धन्ना सिलायलगया साहंती उत्तमं अटुं॥ (संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 92) (20) नरयगई-तिरियगई-माणुस-देवत्तणे वसंतेणं । जंपत्तं सुह - दुक्खं, तं अणुरिते अणन्नमणो॥ (संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 93) (21) नरएसु वेयणाओ अणोवमाओ असायबहुलाओ। कायनिमित्तं पत्तो अणंतखुत्तो बहुविहाओ॥ (संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 94) (22) सुविहिय! अईयकाले अणंतकालं तु आगय - गएणं। जम्मण - मरणमणतं अणंतखुत्तो समणुभूयं ॥ (संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 97) (23) नत्थि भयं मरणसमं, जम्मणसरिसं न विज्जए दुक्खं । जम्मण - मरणायंकं छिंद ममत्तं सरीराओ॥ (संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 98) (24) अन्नं इमं सरीरं अन्नो जीवो त्ति निच्छयमईओ। दुक्खपरिकिलेसकरं छिंद ममत्तं सरीराओ॥ (संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 99)

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