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__10. सारावली पइण्णयं दस प्रकीर्णकों को श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय आगमों की श्रेणि में मानता है। मुनि श्री पुण्यविजयजी के अनुसार प्रकीर्णक नाम से अभिहित इन ग्रंथों का संग्रह किया जाय तो निम्न बावीस नाम प्राप्त होते हैं- (1) चतुःशरण (2) आतुरप्रत्याख्यान (3) भक्तपरिज्ञा (4) संस्तारक (5) तन्दुलवैचारिक (6) चन्द्रकवैद्यक (7) देवेन्द्रस्तव (8) गणिविद्या (9) महाप्रत्याख्यान (10) वीरस्तव (11) ऋषिभाषित (12) अजीवकल्प (13) गच्छाचार (14) मरणसमाधि (15) तीर्थोद्गालिक (16) आराधनापताका (17) द्वीपसागरप्रज्ञप्ति (18) ज्योतिषकरण्डक (19) अंगविद्या (20) सिद्धप्राभृत (21) सारावली और (22) जीवविभक्ति। ___इस प्रकार मुनिश्री पुण्यविजयजी ने बावीस प्रकीर्णकों में सारावली प्रकीर्णक का भी उल्लेख किया है। नन्दीसूत्र, पाक्षिकसूत्र तथा आचार्य जिनप्रभ के ग्रंथों में सारावली प्रकीर्णक के नामोल्लेख का अभाव यही सूचित करता है कि यह प्रकीर्णक ग्रंथइन ग्रंथों से परवर्ती है। अर्थात् चौदहवीं शती के पश्चात् कभी यहग्रंथ रचा गया है। सारावलीप्रकीर्णक के सम्पादन में प्रयुक्त हस्तलिखित प्रतियाँ :
हमने प्रस्तुत संस्करण का मूल पाठ मुनि श्री पुण्यविजयजी द्वारा सम्पदित एवं श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई से प्रकाशित “पइण्णयसुत्ताई" ग्रंथ से लिया है। मुनि श्री पुण्यविजयजी ने इस ग्रंथ के पाठ निर्धारण में निम्नलिखित प्रतियों का उपयोग किया है :
(1) हं : मुनि श्री हंसविजयजी महाराज की हस्तलिखित प्रति। (2) पु1 : लालभाई दलपतभाई, भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर,
अहमदाबाद। में सुरक्षित मुनि श्री पुण्यविजयजी म.सा. की प्रति, क्रमांक
1471। (3) पु. 2 : लालभाई दलपतभाई, भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर,
अहमदाबाद में संग्रहित प्रति, क्रमांक 5628 (4) प्र.3 : मुनिश्री पुण्यविजयजी महाराज द्वारा उपरोक्त प्रकीर्णक
की किसी हस्तलिखित प्रतिकी कालान्तर में प्रयुक्त प्रतिलिपि