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हम क्रमांक 1 से 4 तक की इन पाण्डुलिपियों के पाठभेद मुनिश्री पुण्यविजयजी द्वारा संपादित पइण्णयसुत्ताई नामक ग्रंथ से लिये हैं इन पाण्डुलिपियों की विशेष जानकारी के लिए हम पाठकों से पइण्णयसुत्ताइं ग्रंथ की प्रस्तावना के पृष्ठ 2327 देख लेने की अनुशंसा करते हैं।
सारावली प्रकीर्णक के कर्ता :
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जहाँ तक सारावली प्रकीर्णक के रचयिता का प्रश्न है, हमें इस संदर्भ में न तो कोई अंतर साक्ष्य उपलब्ध होता है और न ही कोई बाह्य साक्ष्य । अतः इस प्रकीर्णक के रचयिता के अंतर - बाह्य साक्ष्यों के पर्याप्त प्रमाणों के अभाव में कुछ भी कह पाना कठिन है । प्रकीर्णक ग्रंथों के रचयिताओं के संदर्भ में मात्र देवेन्द्रस्तव और ज्योतिषकरण्डक ये दो ग्रंथ ही ऐसे हैं जिनमें स्पष्ट रूप से उनके रचयिताओं के नामोल्लेख हैं ।' परवर्ती प्रकीर्णकों में वीरभद्र द्वारा रचित भक्त परिज्ञा, कुशलानुबन्धी चतुःशरण और आराधनापताका- ये तीन प्रकीर्णक ही ऐसे हैं जिनमें इनके रचयिता वीरभद्र का उल्लेख मिलता है ।' भक्तपरिज्ञा और कुशलानुबंधी चतु: शरण प्रकीर्णक में लेखक का स्पष्ट नामोल्लेख हुआ है। आराधनापताका प्रकीर्णक की गाथा 51 में भी परोक्ष रूप से लेखक के रूप में वीरभद्र का ही उल्लेख हुआ है ।' प्रकीर्णकों में चन्द्रवैद्यक, तन्दुलवैचारिक, महाप्रत्याख्यान, मरणविभक्ति, गच्छाचार आदि अनेक प्रकीर्णकों के रचयिता के नाम का कही कोई निर्देश नहीं मिलता है। यही स्थिति सारावली प्रकीर्णक की भी है । अतः सारावली प्रकीर्णक के रचयिता कौन हैं, इस संदर्भ में प्रामाणिक रूप से कुछ भी बता पाना कठिन है ।
1.
2.
3.
अ
(ख)
(क)
(ख)
(11)
देविंदत्थओ - पइण्णयसुत्ताई, भाग - 1, गाथा 310 जोइसकरण्डगं पण्य, वही, भाग-1, गाथा 405
भत्तपइत्रा पइण्णयं, पइण्णयसुत्ताइ, भाग 1, गाथा 172
कुशलानुबंधी अज्झयणं, “चउसरणपइण्णयं”, वही, भाग1,
गाथा 63
सिरिवीरभद्दायरियाविरइया 'आराहणापडाया', वही, भाग 2, गाथा 51
आराहणाविहिं पुण भत्तपरिण्णइ वण्णिमो पुव्वं ।
उस्सणं सच्वेव उ सेसाण विवण्णणा होई ॥