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तथा द्रविड़ राजाओं के पाँच करोड़ मनुष्यों ने केवलि होकर शत्रुजय पर्वत पर सिद्धी प्राप्त की (51-53)।
शत्रुजय पर्वत के तीर्थफल की चर्चा करते हुए कहा है कि अन्य तीर्थ पर उग्र तप एवं ब्रह्मचर्य के द्वाराव्यक्ति जो पुण्य प्राप्त करता है, शत्रुजय पर्वत पर पहुँचा हुआ व्यक्ति वह सब अल्पमत साधना से प्राप्त कर लेता है। तदनंतर कहा है कि आहार, भोजन आदि में आसक्त रहने वाला व्यक्ति जो पुण्य करोड़ दिनों में प्राप्त करता है वह पुण्य शत्रुजय पर्वत पर एक उपवास मात्र से प्राप्त कर लेता है। गौदान, स्वर्णदान तथा भू-दान के द्वारा जो पुण्य प्राप्त होता है वह पुण्य शत्रुजय पर्वत पर पूजा करने मात्र से प्राप्त होता है । इतना ही नहीं आगे यह भी कहा गया है कि शत्रुजय पर्वत के अग्रभाग पर स्थित
चैत्यग्रह में जो व्यक्ति प्रतिमा स्थापित करता है वह भरत खण्ड को भोगकर उपसर्ग रहित स्वर्ग में निवास करता है (54-60)।
शत्रुजय पर्वत अर्थात् पुण्डरिक तीर्थ के फल का विस्तार से निरूपण करते हुए ग्रंथकार कहता है कि जो तीनों समय में शत्रुजय पर्वत पर वंदना करने का स्मरण करता है उसे भाव विशुद्धि से पुण्डरिक तीर्थ प्राप्त होता है। ग्रंथकार यह भी कहता है कि स्वस्थान पर स्थित होकर भी जो मनुष्य शत्रुजय पर्वत को स्मरण कर अपने पुण्य को बढ़ाता है, वहभाव विशुद्धि के द्वाराशजय तीर्थ फल को प्राप्त करता है (61-64)।
प्रस्तुत ग्रंथानुसार मनुष्य लोक में तीर्थयात्रा तब तक सफल नहीं होती, जब तक किसी सौराष्ट देश में स्थित पुण्डरिक पर्वत की यात्रा नहीं कर ली जाती। स्वर्ग-नरक
और मनुष्य लोक में जो कुछ भी तीर्थ हैं ये सबभीवंदन करने के लिए पुण्डरिक तीर्थ को ही देखते हैं अर्थात् सभी तीर्थों में पुण्डरिक तीर्थ ही विशेष वंदनीय है। आगे कहा है कि पुण्डरिक पर्वत को वंदना करने से सभी तीर्थ भी वंदित हो जाते हैं (65-67)।
पुण्डरिक पर्वत को सभी तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ निरुपण करने के क्रम में ग्रंथकार कहता है कि कैलाश-पर्वत, सम्मेद शिखर, पावापुरी, चंपानगरी तथा उज्जिल पर्वत पर वंदना करने से जो पुण्य फल प्राप्त होता है उससे सौ गुणा पुण्य फल पुण्डरिक पर्वत परवंदना करने से प्राप्त होता है (68-69)।
आगे कहा है कि छत्र, ध्वज, पताका, चंवर, स्नान कलश (आठ) तथा पूजा की थाल, इन्हें जो शत्रुजय पर्वत को प्रस्तुत करता है वह विद्याधर होता है। ग्रंथकार आगे यह भी कहता है कि जो व्यक्ति शत्रुजय तीर्थ पर रथदान देकर वैताढ्य और