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साधकों को न केवल समाधिमरण की दिशा में प्रेरित करेगा अपितु यह भी स्पष्ट करेगा कि वे समाधिमरण के द्वारा किस प्रकार अपनी साधना को पूर्ण बना सकें ।
समाधि मरण संबंधी विविध प्रकीर्णक ग्रंथ वस्तुतः उन कुंजियों के समान हैं जो साधक को साधना की परीक्षा में सफल बना देती हैं । वस्तुतः ये ग्रंथ अनासक्त जीवन जीने की वह विधि प्रस्तुत करते हैं जिसके द्वारा वैयक्तिक और सामाजिक जीवन समत्व और शांति की अनुभूति की जा सकती है ।
संवत्सर महापर्व
भाद्रपद शुक्ला पंचमी
23 अगस्त, 1995
सागरमल जैन सहयोगी - सुरेश सिसोदिया