________________
249 चौदहवाँ अर्यमन् नामक मुहूर्त है, यह सिद्धिदायक होता है।
पन्द्रहवाँ भाग्य नामक मुहूर्त है, जिसका अर्ध-भाग शुभ और अर्धभाग अशुभ माना गया है।'
इस प्रकार तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर हम यह पाते हैं कि जम्बूद्वीप और गणिविद्या में कुछ बातों में समानता और कुछ बातों में असमानता है। एक ओर नन्दा, भद्रा, जया, तुच्छा एवं पूर्णा- ये तिथियों के पाँच नाम दोनों ही ग्रंथों में समान रूप से माने गये हैं, वहीं जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में पन्द्रह दिवस-तिथियों एवं पन्द्रह रात्रि-तिथियों के स्वतन्त्र नाम भी दिये गये हैं, जिनका गणिविद्या में अभाव है। इन दोनों ग्रंथों के गणितज्योतिष संबंधी विवरणों को देखने पर ऐसा लगता है कि जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में तिथि, . दिवस, नक्षत्र, मास, मुहूर्त आदि के संदर्भ में जितना विस्तृत विवरण है उतना विस्तार गणिविद्या में नहीं है। इससे ऐसा परिलक्षित होता है कि जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में विषय का विकास हुआहै।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति आदि आगमों, नियुक्ति आदि आगमिक व्याख्या ग्रंथों में जो ज्योतिष संबंधी विवरण आए हैं, वे सभी विवरण गणित ज्योतिष से संबंधित है, फलित-ज्योतिष से संबंधित नहीं है जबकि गणिविद्या विशुद्ध रूप से फलित-ज्योतिष का ग्रंथ है। यह संभव है कि गणिविद्या में जो तिथि, करण, नक्षत्र, मुहूर्त आदि के संक्षिप्त विवरण हैं उनका विवेचन मात्र फलितज्योतिष को ध्यान में रखकर किया गया हो।
जम्बूद्वीप एवं गणिविद्या-दोनों का उल्लेखनन्दीसूत्र एवं पाक्षिक सूत्र में अंगबाह्य आगमों के रूप में होने से इतना अवश्य माना जा सकता है कि ये दोनों ही पाँचवीं शताब्दी के पूर्व के ग्रंथ है। किन्तु इनमें से कौन पूर्ववर्ती है यह मानना कठिन है। हमने पूर्व में फलित ज्योतिष के जैन परंपरा में प्रवेश को परवर्ती मानकर यह निर्णय किया है कि गणिविद्या को जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति से परवर्ती होना चाहिए, किन्तु जहाँ तक तिथि, नक्षत्र,ग्रह, दिवस आदि विवरणों का प्रश्न है, निश्चित ही जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति गणिविद्या
1. व्रततिथिनिर्णय, पृ. 151-1561