________________
287
उपासकदशांगसूत्र में यह गुण निष्पन्न नाम देने की परंपरा और विकसित हुई और उसमें श्रमण भगवान महावीर, आदिकर, तीर्थंकर, स्वयंसंबुद्ध, जिन, तारक, बुद्ध, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, शिव, अर्हत् , जिन, केवलीआदिनामों केउल्लेख मिलते हैं।
आगे चलकर न केवल अपनी परंपरा में प्रचलित गुणनिष्पन्न नामों का संग्रह किया गया अपितु अन्य परंपरा में प्रचलित उनके इष्ट देवों के नामों को भी संग्रहित किया गया-जिनशत नाम, जिनसहस्त्र नाम आदि रचनाएँ निर्मित हुई। इसी प्रकार की शैली का संकेत हमें भक्तामर स्तोत्र में भी मिलता है जिसमें आदि तीर्थंकर ऋषभदेव की स्तुति करते हुए उनके लिए शिव, विधाता, शंकर, पुरुषोत्तम आदि विशेषण/गुण निष्पन्न नाम घटित किये गये। वैदिक एवं बौद्ध ग्रंथों में नाम साम्यता
वैदिक परंपरा में विष्णु को पुरुषोत्तम भी कहा गया है । पुरुषपुण्डरीक नाम भी वैदिक परंपरा में विष्णु के लिए विशेषण के रूप में प्रयुक्त होता है । पुरुषवर, पुरुषपुण्डरीक एवं लोकनाथशब्द विष्णु के लिए महाभारत में प्रयुक्त है।
बौद्ध परंपरा के ग्रंथों में अंगुत्तर निकाय के अतिरिक्त महावीर के विशेषणों को ही बुद्ध के विशेषण के रूप में प्रस्तुत करने वाला ग्रंथ विसुद्धिमग्ग है । उसमें इन सब शब्दों की विस्तृत व्याख्या की गई है। सर्वज्ञ एवं सर्वदर्शी शब्द पालित्रिपिटक में प्राप्त होते हैं।
पालित्रिपिटिक में महावीर के लिए विशेषण के रूप में सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, तीर्थंकर आदिशब्दों का प्रयोग किया गया है।
31. उवासगदसाओ- मुनिमधुकर -पृ. 13-18॥ 32. महावीर चरितमीमांसा.प. दलसुखमालवणिया-पृ. 22 33. (अ) वही-पृ. 23
(ब) तुलना- “सोभगवया- अरहं ....... पुरिसदम्मसारथीसत्था
देवमणुस्साण बुद्धोभगवा- अनुत्तरनिकाय - 31285। 34. विशुद्धिमार्ग-पृ. 133॥ (4) “सव्वण्णूसव्वदस्सावीअपरिसेसं
त्राणदस्सन पाटिजानाति" - महावीर चरितमीमांसा. पृ. 23॥ 35. महावीर चरितमीमांसापृ. 23॥