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314 मणियों में वेडूर्यमणी, सुगन्धित पदार्थों में गोशीर्ष चन्दन, रत्नों में वज्र, श्रेष्ठ पुरुषों में अरहन्त, महिलाओं में तीर्थंकरों की माताएँ, वंशों में तीर्थंकर वंश, कुलों में श्रावककुल, गतियों में सिद्धगति, सुखों में मुक्तिसुख, धर्मों में अहिंसा धर्म, मानवीय वचनों में साधुवचन, श्रुतियों में जिनवचन तथा शुद्धियों में सम्यक्दर्शन की तरह समस्त साधनाओं में समाधिमरण श्रेष्ठ है (4-7)।
समाधिमरण को साधकों के लिए कल्याणकारी एवं आत्मोन्नति का साधन मानते हुए कहा गया है कि समाधिमरण देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। तीनों लोकों के बत्तीस देवेन्द्रभी एकाग्रचित्त से इसका ध्यान करते हैं (8)।
आगे की गाथाओं में समाधिमरणको तीर्थंकरदेव प्रणीत एवं सभी मरणों में श्रेष्ठ मरण कहा गया है। श्वेतकमल, कलश, स्वस्तिक आदि सभी मंगलों में भी इसी को प्रथम मंगल माना गया है (9-15)। ___ग्रंथ में कहा गया है कि समाधिमरणरुपी गजेन्द्र पर आरुढ़ होकर भी उसका परिपालन वे ही व्यक्ति कर सकते हैं जो तपरूपी अग्नि से तृत्प हों, व्रतों के परिपालन में दृढ़ हों तथा जिनेश्वर देवों का ज्ञान ही जिनका विशुद्ध पाथेय हो (16)। समाधिमरण को स्वीकार करने वाले साधकों के लिए कहा है कि वस्तुतः उन्होंने संसार के सारतत्व को ही प्राप्त कर लिया है। समाधिमरण को स्वीकार करने वाले साधकों के लिए कहा है कि वस्तुतः उन्होंने संसार के सारतत्व को ही प्राप्त कर लिया है। समाधिमरण को प्राणी जगत में सर्वश्रेष्ठ तीर्थ माना गया है और कहा है कि समाधिमरण पूर्वक मरकर कई मुनिजन सर्वोत्तम निर्वाण सुख को प्राप्त हुए हैं (17-22)।
प्रस्तुत ग्रंथ में विविध लक्षणों एवं उपमाओं के द्वारा समाधिमरण की विशेषता बतलाते हुए यहाँ तक कहा गया है कि अनेक प्रकार के विषयसुखों को भोगते हुए देवलोक में स्थित देवता भी किसी के समाधिमरण का चिंतन करते ही आसन और शय्याओं को त्याग देते हैं अर्थात् आसन और शय्या का त्याग कर वे उसे वंदन करते हैं (24-30)
समाधिमरण का स्वरूप निरुपण करते हुए ग्रंथ में कहा है कि जिसके मन, वचन और काय रूपी योग शिथिल हो गये हों, जो राग-द्वेष से रहित हो, त्रिगुप्ति से गुप्त हो, त्रिशल्य और मद से रहित हो, चारों कषायों को नष्ट करने वाला हो, चारों प्रकार की