Book Title: Prakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 327
________________ 321 कुंभरकडे नगरे खंदगसीसाण जंतपीलणया। एवं 'वहे' कहिज्जइ जह सहियं तस्स सीसेहिं॥ (मरणविभक्ति प्रकीर्णक, गाथा 496) (6) (ii) जह खंदगसीसेहिं सुक्कमहाझाणसंसियमणेहिं न कओ मणप्पओसो पीलिज्जंतेसु जंतम्मि॥ (वही, गाथा 444) अभिणंदणादिया पंचसया णयरम्मि कुंभकारकडे। आराधणं पवण्णा पीलिज्जंता वि यंतेण ॥ __ (भगवती आराधना, गाथा 1550) दंडो वि य अणगारो आयावणभूमिसंठिओ वीरो। सहिऊण बाणघायं सम्मं परिनिव्वुओ भगवं ॥ - (मरणविभक्ति प्रकीर्णक, गाथा 466) (7) (ii) दंडो जउणावंकेण तिक्खकंडेहिं पूरिदंगो वि। तं वेयणमधियासिय पडिवण्णो उत्तमं अटुं॥ (भगवती आराधना, गाथा 1549) (8) (i) सेलम्मि चित्तकुडे सुकोसलो सुट्ठिओ उ पडिमाए। नियग जणणीए खइओ वग्घीभावं उवगयाए॥ (मरणविभक्ति प्रकीर्णक, गाथा 467) मुग्गिलगिरिम्मि सुकोसलो वि सिद्धत्थदइयओ। वग्घीए खज्जंतो पडिवन्नो उत्तमं अटुं॥ (भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, गाथा 161) (8) (iii) पोग्गिलगिरिम्मि य सुकोसलो वि सिद्धत्थदइय भयवंतो। वग्घीए वि खज्जंतो पडिवण्णो उत्तमं अटुं॥ (भगवती आराधना, गाथा 1535) (8) (iv) सुकोशलाभिधो रूपी बभूव तनयोऽयोः। ... ... चातुर्मासोपवासस्थौ मौण्डिल्य धरणीतले। .... ... उपसर्ग सहित्वाऽमुं... निर्वाणं जग्मतुर्धारौ तद्गिरौ तौ तपाधनौ।। (सुकोशल मुनि कथानक, बृहत्कथाकोश, कथा 152, श्लोक 2-8)

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