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केवली" महर्षि मुनि प्रभु"आदिशब्दों । विशेषणों का प्रयोग भी महावीर के लिए किया गया है।
स्थानांग सूत्र में महावीर के लिए भगवंत', 'तीर्थंकर', 'अर्हत्', 'जिन', 'केवली' शब्दों का प्रयोग उनके विशेषण के रूप में हुआ है।
समवायांग सूत्र में “समणस्स भगवओ महावीरस्स" शब्दों के उल्लेख के साथ-साथ 'तीर्थंकर', 'सिद्ध', 'बुद्ध', 'अर्हन्' का भी उल्लेख अलग-अलग स्थानों पर हुआहै।
भगवतीसूत्र' ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र' एवं अनुत्तरोपपातिक दशासूत्र में महावीर के विशेषणों की परंपरा और विकसित हुई और उन्हें महावीर, (धर्म के) आदिकर्ता तीर्थंकर, स्वयंसंबुद्ध, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुष-वर-पुण्डरीक, लोकोत्तम, लोकनाथ, धर्मसारथी, जिन, बुद्ध सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, शिव, सिद्धगति को प्राप्त आदि विशेषणों द्वारा संबोधित कर उनका गुण कीर्तन किया गया है।"
24. सूत्रकृतांगसूत्र - 1/14/15 25. वही-1-6-26 26. वही-1-6-7 27. वही-1-6-28 28. स्थानांगसूत्र - मुनि मधुकर-1/1, 2/4, पृ. 12, पृ. 516 29. समवांयागसूत्र-मुनि मधुकर -समवाय-11, समवाय - 15, समवाय- 21
समवाय- 24, समवाय 54आदि 30. (अ) “समणे भगवं महावीरे आइगरे, तित्थगरे, सहसंबुद्धे, पुरुषत्तमे, पुरिससीहे,
पुरुषवरपुण्डरिए, लोगुत्तमे, लोगनाहे, लोगप्पदीवे ..... धम्मदेसए, धश्मसारही ........ जिणे जावए दुद्धे, बोहए मुत्ते मायए, सव्वण्णू, लव्वदरिसी, शिवमयलमरुय मणंतमक्खन-मव्वाबाहमपुणरावत्तयं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपाविउकामाणं।
भगवतीसूत्र - मुनि मधुकर 5 / 1॥ (ब) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र - मुनि मधुकर 1/8 (स) अनुत्तरोपपादिकदशा- मुनि मधुकर 1/1,3/22