________________
297
सामान्य संथारा : जब स्वाभाविक जरावस्था अथवा असाध्य रोग के कारण पुनः स्वस्थ होकर जीवित रहने की समस्त आशाएँ धूमिल हो गई हों, तब यावज्जीवन तक जो देहासक्ति एवं शरीर-पोषण के प्रयत्नों का त्याग किया जाता है और जो देहपात पर ही पूर्ण होता है, वह सामान्य संथारा है। समाधिमरणग्रहण करने विधिः
जैनागमों में समाधिमरण ग्रहण करने की विधि निम्नानुसार बताई गई हैसर्वप्रथम मलमूत्रादि अशुचि विसर्जन के स्थान का अवलोकन कर नरम तृणों की शैय्या तैयार कर ली जाती है । तत्पश्चात् अरिहंत, सिद्ध और धर्माचार्यों को विनयपूर्वक नमस्कार कर पूर्वग्रहित प्रतिज्ञाओं में लगे हुए दोषों की आलोचना और उनका प्रायश्चित ग्रहण किया जाता है। इसके बाद समस्त प्राणियों से क्षमा-याचना की जाती है और अंत में अठारह पापस्थानों, अन्नादि चतुर्विध आहारों का त्याग करके शरीर के ममत्व एवं पोषण क्रिया का विसर्जन किया जाता है। साधक प्रतिज्ञा करता है कि मैं पूर्णतः हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ यावत् मिथ्यादर्शन शल्य से विरत होता हूँ, अशन आदि चारों प्रकार के आहार का यावज्जीवन के लिए त्याग करता हूँ । मेरा यह शरीर जो मुझे अत्यंत प्रिय था, मैंने इसकी बहुत रक्षा की थी, कृपण के धन के समान इसे सम्भालता रहा, इस पर मेरा पूर्ण विश्वास था (कि यह मुझे कभी नहीं छोड़ेगा), इसके समान मुझे अन्य कोई प्रिय नहीं था, इसलिए मैंने इसे शीत, उष्ण, क्षुधा, तृष्णा आदि अनेक कष्टों से एवं विविध रोगों से बचाया और सावधानीपूर्वक इसकी रक्षा करता रहा, अब मैं इस शरीर का विसर्जन करता हूँऔर इसकेपोषणएवंरक्षण के समस्त प्रयासों का परित्याग करता हूँ।" बौद्ध परंपरा में मृत्युवरण
यद्यपि बुद्ध ने जैन परंपरा के समान ही धार्मिक आत्महत्याओं को अनुचित माना है, तथापि बौद्ध साहित्य में कुछ ऐसे संदर्भ अवश्य हैं जो स्वेच्छापूर्वक मृत्युवरण का समर्थन करते हैं। संयुक्तनिकाय में असाध्य रोग से पीड़ित भिक्षु वक्कलि कुलपुत्र" तथा भिक्षु द्वारा की गई थी इन आत्महत्याओं का समर्थन स्वयं बुद्ध ने किया था और
16.प्रतिक्रमणसूत्र-संलेखना पाठ 17. संयुक्तनिकाय, 21121415 18.संयुक्तनिकाय, 34121414