________________
310
समाधिमरण पर लिखे गये इन सभी ग्रंथों में परवर्ती होते हुए भी संस्तारक प्रकीर्णक का महत्वपूर्ण स्थान है, चूंकि यह ग्रंथ समाधिमरण के स्वरूप, प्रकार एवं प्रक्रिया पर संक्षिप्त किन्तु प्रामाणिक रूप से प्रकाश डालता है। प्रस्तुत कृति में अनेक प्रेरणात्मक गाथाएँ और समाधिमरण लेने वाले व्यक्तियों की कथाएँ निर्दिष्ट हैं जो एक साधक को सदैव समाधिमरण की स्थिति में प्रेरणा प्रदान करती हैं। संस्तारक प्रकीर्णक के सम्पादन में प्रयुक्त हस्तलिखित प्रतियाँ: __ प्रस्तुत संस्करण का मूलपाठ मुनिश्री पुण्यविजयजी द्वारा सम्पादित एवं महावीर जैन विद्यालय, बम्बई से प्रकाशित ‘पइण्णसुत्ताई' ग्रंथ से लिया गया है। मुनिश्री पुण्यविजयजी ने इस ग्रंथ के पाठ निर्धारण में निम्नलिखित प्रतियों का उपयोग किया
1. सा. आचार्य श्री सागरानन्दसूरिश्वरजी द्वारा संपादित एवं वर्ष 1927 में
आगमोदय समिति, सूरत द्वारा प्रकाशित प्रति। 2. जे. :आचार्यश्री जिनभद्रसूरि जैन ज्ञानभंडार की ताड़पत्रीय प्रति।
3. सं. : संघवीपाड़ा जैन ज्ञानभंडार की ताड़पत्रीय प्रति। __4. पु. : मुनि पुण्यविजयजी के हस्तलिखित ग्रंथसंग्रह की प्रति। . 5. हं:श्रीआत्माराम जैन ज्ञानमंदिर, बड़ौदा में उपलब्धप्रति।
यह प्रतिमुनि श्री हंसराजजी के हस्तलिखित ग्रंथ संग्रह की है।
इन पाण्डुलिपियों की विशेष जानकारी के लिए हम पाठकों से पइण्णयसुत्ताई ग्रंथ की प्रस्तावना के पृष्ठ 23-27 देख लेने की अनुशंसा करते हैं। ग्रंथरचयिताः
जहाँ तक संस्तारक प्रकीर्णक के रचयिता का प्रश्न है, हमें इस संदर्भ में न तो कोई अन्तर्साक्ष्य उपलब्ध होता है और न कोई बाह्य साक्ष्य । अतः इस प्रकीर्णक के