Book Title: Prakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith
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गच्छाचार में तथा संबोध प्रकरण के कुगुरु अध्याय मे कुछ गाथाएँ समान रूप से मिलती हैं, जिनका तुलनात्मक विवरण इस प्रकार है
(1) जत्थय मुणिणो कयविक्कयाइंकुव्वंति निच्चमुझट्ठा। तंगच्छं गुणसायरविसंवदूरंपरिहरिज्जा॥
(संबोधप्रकरण, गाथा 45) जत्थय मुणिणो कय-विक्कयाईकुव्वंति संजमुब्भट्ठा। तंगच्छंगुणसायर! विसंवदूरंपरिहरिज्जा॥
(गच्छाचार, गाथा 103) (2) वत्थाई विविटवण्णाई अइसियसद्दाइंधूववासाइ। .
पहिरिज्जइ जत्थगणेतं गच्छं मूलगुणमुक्कं॥ जत्थय विकहाइपरा कोउहला दव्वलिंगिणो कूरा। निम्मेरा निल्लज्जातंगच्छं जाण गुणभट्ट। अन्नत्थियवसहाइव पुरओ गायंति जत्थमहिलाएं। जत्थ जयारमयारंभणंति आलंसयं दित्ति॥
- (संबोधप्रकरण, गाथा 46, 48, 49) सीवणं तुन्नणंभरणं गिहत्थाणंतुजा करे। तिल्लउवट्टणं वा वि अप्पणो यपरस्सय॥ गच्छइसविलासगईसयणीयं तूलियंसबिब्बोयं। उव्वट्टेइ सरीरं सिणाणमाईणि जा कुणइ॥ गेहेसु गिहत्थाणं गंतूण कहा कहेइ काहीया॥ तरुणाइअहिवडते अणुजाणे, साइपडिणीया॥
(गच्छाचार, गाथा 113-115) (3) जत्थय अज्जालद्धपडिगहमाइंव विविहमुवगराणं। पडिभुंजइ साहूहिं तं गोयम! केरिसंगच्छं।
(संबोधप्रकरण, गाथा 50)
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