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गणिविद्या प्रकीर्णक की विषयवस्तु का जैन आगमों
एवं अन्य ज्योतिष ग्रंथों में विस्तार
- गणिविद्या प्रकीरणक की विषयवस्तु का जैन आगमों, व्याख्या ग्रंथों एवं अन्य ज्योतिष विषयक ग्रंथों के साथ किये गये तुलनात्मक विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि गणिविद्या प्रकीर्णक की विषयवस्तु स्थानांगसूत्र, समवायांग सूत्र, अनुयोगद्वार सूत्र, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति आदि आगम ग्रंथों, उत्तराध्ययन नियुक्ति, सूत्रकृतांग नियुक्ति विशेषावश्यक भाष्य आदि आगमिक व्याख्या ग्रंथों एवं आरंभसिद्धी, व्रततिथिनिर्णय, ज्योतिश्चन्द्रार्क, ज्योतिषसार, जैन ज्योतिर्ज्ञानविधि, मुहूर्तराज एवं सुगमज्योतिषआदिजैन एवं जैनेतरज्योतिष ग्रंथों में किंचितभेद से प्राप्त होती है।
गणिविद्या ग्रंथ में ज्योतिष विषयक तिथि, ग्रह, नक्षत्र आदि के उल्लेख तो प्राप्त होते हैं परंतु इसमें मुख्य रूप से मुनि जीवन की साधना से संबंध कार्यों के तिथि, मुहूर्त, करण आदि का ही विचार किया गया है। जबकि परवर्ती कुछ ग्रंथों से लौकिक कार्यों के संबंध में भीचर्चा की गई है। प्रस्तुत विवेचना जैन आगमों एवं अन्य जैन ज्योतिषग्रंथों में प्राप्त विवेचन के आधार पर दिवस, तिथि, ग्रह, नक्षत्र, करण एवं मुहूर्तों के नाम, उनकी संज्ञाएँ, उनमें करने एवं नहीं करने योग्य कार्यों का संक्षिप्त विवरण देने का प्रयास मात्र है। ज्योतिष ग्रंथों में हमने व्रततिथिनिर्णय- श्री नेमिचन्द्र शास्त्री - भारतीय ज्ञानपीठ- काशी नामक पुस्तक को ही अपना उपजीव्य बनाकर वर्णन किया है।
1. दिवस द्वार - जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति में कहा गया है कि प्रत्येक महिने 2 पक्ष और 30 दिन होते हैं। प्रत्येक पक्ष में 15-15 दिवस होते हैं। ये 15 दिवस है- प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पंचदशी अर्थात् अमावस्या यापूर्णिमाका दिन।' _____ इन 15 दिवसों के अन्य 15 नाम भी बतलाये गये हैं। ये हैं- 1. पूर्वांग,2. सिद्ध मनोरम, 3. मनोहर, 4. यशोभद्र, 5. यशोधर, 6. सर्वकामसमृद्ध 7. इन्द्रमूर्द्धाभिषिक्त, 8. सोमनस, 9. धनञ्जय, 10. अर्थसिद्ध 11. अभिजात, 12.