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अग्निवेश, ईशान, आनंद एवं विजय इन मुहूर्तों में शैक्ष को उपस्थापना (महाव्रतों में दीक्षित) और गणि एवं वाचक पद प्रदान करें। ब्रह्म, वलय, वायु, वृषभ तथा वरुण मुहूर्त्त में अनशन, पादोपगमन एवं समाधिमरण करने का कथन किया गया है (गाथा 56-58)1
( 6 ) शकुनबलद्वार - प्रत्येक कार्य को करने के पूर्व घटित होने वाले शुभत्व या अशुभत्व का विचार करना शकुन कहलाता है। ग्रंथ में बताया गया है कि पुल्लिंग नाम वाले शकुनों में शैक्ष को दीक्षा प्रदान करे । स्त्री नाम वाले शकुनों में समाधि - मरण ग्रहण करे, नपुंसक नाम वाले शकुनों में सभी शुभ कार्यों का त्याग करे एवं मिश्रित निमित्तों (शकुनों) में सभी आरंभों का त्याग करे। (गाथा 59-64)
( 7 ) लग्नबलद्वार - लग्न का अर्थ है - वह क्षण जिसमें सूर्य का प्रवेश किसी राशि विशेष में होता है। लग्न के आधार पर किसी कार्य के शुभ-अशुभ फल का विचार करना लग्न शास्त्र कहा जाता है। प्रस्तुत ग्रंथ में अस्थिर राशियों वाले लग्नों में शैक्ष को दीक्षा प्रदान करना, स्थिर राशियों वाले लग्नों में व्रत में उपस्थापना करना, एकावतारी लग्नों में स्वाध्याय एवं होरा लग्नों में शैक्ष को दीक्षा प्रदान करने का निर्देश किया गया है। यहीं पर बताया है कि सौम्य लग्नों में संयमाचरण एवं क्रूर लग्नों में उपवास आदि करना चाहिए। राहू एवं केतु वाले लग्नों में सर्वकार्य त्याग करने चाहिए। (गाथा 64-72)
(8) निमित्तबलद्वार - भविष्य आदि जानने के एक प्रकार को निमित्त कहा जाता है। कार्यों को सम्पादित करने के लिए निमित्त पर भी विचार किया जाता है। ये निमित्त कृत्रिम नहीं होते हैं इनसे भविष्य की सिद्धि होती है। निमित्त उत्पाद लक्षण वाले होते हैं जिनसे भूत-भविष्य जाना जाता है। (गाथा - 78) यहाँ पर पुरुष नाम वाले निमित्तों में पुरुष दीक्षा ग्रहण करे एवं स्त्री नाम वाले एवं निमित्तों में स्त्री दीक्षा ग्रहण करे, कहा गया है । नपुंसक संज्ञा वाले निमित्तों में कृत-अकृत कार्यों का विवेचन किया गया है । (गाथा 76-77) प्रशस्त निमित्तों में सभी कार्य प्रारंभ करने चाहिए एवं अप्रशस्त निमित्तों में समस्त कार्यों का त्याग करना चाहिए। ( गाथा 79-82)।
ग्रंथकार ने ग्रंथ की अंतिम गाथाओं में कहा है कि दिवसों से तिथि बलवान होती है। तिथियों से नक्षत्र बलवान होते हैं। नक्षत्रों से करण और करणों से ग्रह बलवान होते हैं। ग्रहों से मुहूर्त्त, मुहूर्तों से शकुन, शकुनों से लग्न और लग्नों से निमित्त बलवान होते हैं । (गणिविद्या गाथा 83-85)