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भगवान् ऋषभदेव के चौरासी हजार शिष्यों के चौरासी हजार प्रकीर्णकों का उल्लेख किया गया है । '
दूसरे तीर्थंकरों से तेबीसवें तीर्थंकरों के शिष्यों द्वारा संख्येय सहस्त्र प्रकीर्णक रचे गये। महावीर के तीर्थ में चौदह हजार साधुओं का उल्लेख प्राप्त होता है । अतः उनके तीर्थ में प्रकीर्णकों की संख्या चौदह हजार मानी गई है।
नन्दीसूत्र में कहा गया है कि जिस तीर्थंकर के जितने सहस्र शिष्य औत्पात्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी तथा पारिणामिकी बुद्धि से युक्त हैं उनके उतने ही सहस्त्र प्रकीर्णक होते हैं।'
नन्दीसूत्र के टीकाकार आचार्य मलयगिरि ने इस संबंध में इस प्रकार स्पष्टीकरण किया है कि अर्हत् प्ररुपित श्रुत का अनुसरण करते हुए उनके शिष्य भी ग्रंथ रचना करते हैं- उन्हें प्रकीर्णक कहा जाता है । अथवा अर्हत् उपदिष्ट श्रुत का अनुसरण करते हुए शिष्य धर्मदर्शना आदि के संदर्भ में अपने वचन कौशल से ग्रंथकार पद्यात्मक रूप में जो भाषण करते है वह प्रकीर्णक संज्ञक है । '
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हाँलाकि आज अनेकों प्रकीर्णक ग्रंथ सामने आ रहे है परंतु निम्न 10 प्रकीर्णकों का सर्वमान्य उल्लेख प्राप्त होता है ।
(1 ) चउसरण (चतुः शरण) (2) आउर पच्चक्खाण (आतुर प्रत्याख्यान ) ( 3 ) महापच्चक्खाण ( महाप्रत्याख्यान ) ( 4 ) भत्तपरिण्णा (भक्तपरिज्ञा) (5) तंदुलवैयालिय (तन्दुलवैचारिक) ( 6 ) संथारग ( संस्थारक ) ( 7 ) गच्छायार (गच्छाचार), (8) गणिविज्जा (गणिविद्या)
1. समवायांगसूत्र - मुनि मधुकर - 84वाँ समवाय ।
2. एवमाइयाई, चउरासीइं पइन्नगसहस्साइं भगवओ अरहओ उसहसामिस्स आइतित्थयरस्स, तहा संखिज्जाई पन्नगसहस्साइं मज्झिमगाणं जिणवराणं, चोहसपइण्णगसहस्साणि भगवओ वद्धमाण सामिस्स । अहवा जस्त जत्तिया सीसा उप्पत्तियाए वेणइआए, कम्मिआए, पारिणामियाए चउव्विहाए बुद्धीए उववेआ तस्स तत्तिआई पण्णगसहस्सा | 81
. इह यद भगवदर्हदुपदिष्टं श्रुतमनुसृत्य भगवतः श्रमणा विरचयंति तत्सर्व प्रकीर्णकमुच्यते । अथवा श्रुतमनुसरन्तो यदात्मनो वचनकौशलेन धर्मदेशनाऽऽदिषु ग्रन्थ पद्धतिरूपतया भाषन्ते तदपि सर्व प्रकीर्णकम्
अभिधान राजेन्द्र कोश, भाग - 5, पृ. 31
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