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28. क्रियाहीन ज्ञान निकम्मा (होता है), (तथा) अज्ञान से (की हुई)
क्रिया (भी) निकम्मी (होती है); (प्रसिद्ध है कि) देखता हुआ (भी) लँगड़ा (व्यक्ति) (आग से) भस्म हुआ और दौड़ता हुआ (भी) अन्धा व्यक्ति (आग से भस्म हुआ)।
29. (आचार्य) (ऐसा) कहते हैं (कि) (ज्ञान और क्रिया का) संयोग सिद्ध
होने पर फल (प्राप्त होता है), क्योंकि (ज्ञान अथवा क्रियारूपी) एक पहिये से (धर्मरूपी) रथ नहीं चलता है। (समझो) अन्धा और लँगड़ा, जुड़े हुए वे (दोनों) जंगल में इकट्ठे मिलकर (आग से बचकर) नगर में गए।
30.
जैसे धागे-युक्त सुई कूड़े में पड़ी हुई भी नहीं खोती है, वैसे ही संसार में स्थित भी नियम-युक्त जीव (व्यक्ति) बर्बाद नहीं होता है।
31.
जो चरित्र-युक्त (है), (वह) अल्प शिक्षित होने पर (भी) विद्वान (व्यक्ति) को मात कर देता है; किन्तु जो चरित्रहीन (है), उसके लिए बहुत श्रुत-ज्ञान से (भी) क्या (लाभ) (है)?
32.
जिन-सिद्धान्त में (यह कहा गया है कि) आहार, आसन और निद्रा पर विजय प्राप्त करके और (आत्मा को) गुरु-कृपा से समझकर निजआत्मा ध्यायी जानी चाहिए।
33.
जब तक (किसी को) बुढ़ापा नहीं सताता है, जब तक (किसी के) रोग नहीं बढ़ता है, जब तक (किसी को) इन्द्रियाँ क्षीण नहीं होती हैं, तब तक (उसको) धर्म (आध्यात्मिकता) का आचरण कर लेना चाहिए।
34. जो दान चार प्रकार का कहा जाता है, (उसका) विभाजन आहार,
औषध, शास्त्र तथा अभय (के रूप में है)। वह (दान) दिया जाना
चाहिए। (ऐसा) उपासकाध्ययन में वर्णित (है)। प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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