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संग्रहणीसूत्र.
॥ हवे मनुष्यलोकमां चंद्रमा सूर्यनी पंक्ति संख्या कहेते. ॥ दो ससि दोरवि पंती ॥ एगंतरिया बसठि संखाया ॥ मेरुं पयादिता ॥ माणुस खित्ते परिप्रडंति ॥ ७९ ॥
अर्थ- दोससि के० वे चंद्रमा अने दोरवि के० बे सूर्यनी पंती के० पंक्ति ते श्रेणी बे; ते एगंतरिया के० एकेकने अंतरेबे. एक यथाक्रमे एक सूर्यनी पंक्तिने अंतरे एक पंक्ति चंद्रमानी एम चंद्र पंक्तिने अंतरे सूर्यनी बे. ए रीते चार पंक्ति बे. ते एकेकी चंद्र पंक्तिए बस हिसंखाया के० बासठ चंद्रमा बे, छाने एकेकी सूर्य पंक्तिए area सूर्य बे; ते चारे पंक्ति जंबूद्वीपना मेरुपया हिता के० मेरुपर्वतने प्रदक्षिणा देती थकी माणुसखित्ते के० मनुष्य क्षेत्रने विषे परिाति के० प्ररिभ्रमण करे बे. एटले फरती रहे . एटले जंबूद्वीपना मेरुथकी एक सूर्य दक्षिण दिशाए चार चरे; तेवारे बीजो सूर्य उत्तर दिशाए चार चरे. तेमज लवणसमुनी एकेक दिशाए बेबे सूर्य चार चरे, धातकीना छ, कालोदधिना एकवीश, पुष्करार्द्धना बत्रीश. एम सर्व मली area सूर्य दक्षिण दिशाए छाने बासव उत्तर दिशाए. ए बेउ समश्रेणी सूर्यनी मये के एकसो बीश सूर्य, तेमज बासठ बासव चंद्रमानी वे पंक्ति मध्ये थके एकसो बत्रीश चंद्रमा मनुष्यलोकमांहे चार चरे ॥ ७९ ॥
॥ हवे ग्रहनी पंक्ति मनुष्यक्षेत्रमां कहे . ॥
एवं गाइणोवि ॥ नवरं ध्रुव पासवत्तिणो तारा ॥ तं चिय पयादिता ॥ तचैव सया परिजमंति ॥ ८० ॥
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अर्थ एवं के० ए पूर्वोक्त सूर्य चंद्रनी पंक्तिनी परेज गहाइयोविदु के० प्रहादिक पण निचे जाणवा. एटले ग्रह तथा नक्षत्रनी पंक्ति जाणवी. ते यावीरीते के, एकेक चंद्रमानी पढवाडे अद्वाशी नक्षत्रनी एक पंक्ति एवी बासठ बासवनी बे पंक्ति मली एकसोने वत्रीश पंक्ति, श्रद्वाशी अहाशी नक्षत्रोनी चंद्रमानी पाउल जाणवी. तेमज अहावीश ग्रहनी एक पंक्ति, एवी बारावनी बे पंक्ति ते सर्व मेरु पांखति फरे बे, नवरं के० एटलुं विशेष जे, श्रीगणांगसूत्रने विषे जंबुद्वीपे चार दिशाए चार ध्रुवतारा बे. धुवपासवत्तिणो तारा के० ए ध्रुव ताराना पार्श्ववर्त्ति जे तारा बे, एटले ध्रुवता
पासे जे बीज सत्तरिसादिकना तारा बे, ते तंचिय पयाहिणंता के० ते ध्रुवताराज प्रदक्षिणा फरता वर्त्ते, तब्बेवसया परिजमंति के० त्यांज सदा परिभ्रमण करे.
हां प्रस्तावात अल्प वक्तव्यता जणी एक बात कहे बे के, चंद्रमा अने सूर्यनी साथे नक्षत्रोनी गति नियत बे; परंतु मंडल सदा अनवस्थित बे. केमके चं
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