Book Title: Prakarana Ratnakar Part 4
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 850
________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ श्रावीश, उगणत्रीश अने त्रीश, ए पांच उदयस्थानक होय. तिहां प्रत्येकें बाणु अने अध्याशी, ए बेबे सत्ता होय. तेम तिर्यंचने पण एकत्रीश सहित उ उदयें बे बे सत्ता होय. तथा गणत्रीशनो बंध देश विरति मनुष्यनेज होय. तिहां पच्चीशथी त्रीशवालां तेहीज पूर्वलां पांच उदयस्थान लेवां. तिहां त्र्याणु अने नेव्याशी, ए बेबे सत्तास्थानक होय. सर्व थ देशविरतियें बावीश सत्ता होय. हवे प्रमतें बंधादिक संवेध कहे . प्रमत्त साधुने अहावीश, उंगणत्रीश, ए वे बंधस्थानक देशविरति मनुष्यनी पेरें नाववां. तिहा प्रत्येक बंधे मनुष्यना नांगा श्राप था लेतां शोल नांगा थाय तथा २५-२७--ए-३०, ए पांच पांच उदयस्थानक होय. तिहां प्रथमना चार उदय तो आहारक अने वैक्रिय शरीर करनारा साधुनी अपेक्षायें लेवा. तिहां पच्चीश अने सत्तावीशना उदयें बे बे नांगा तथा अहावीश अने उगणत्रीशना उदयें चार चार नांगा अने त्रीशनो उदय, सहज मनुष्यने होय. तिहां नांगा बे आहारक वैक्रियना अने (१४४ ) सहजना मलीने (१४६), एम सर्व मली एकेका बंधस्थानकें (१५७) नांगा करतां (३१६) उदय नांगा थाय, तिहां व्याणु, बाणु, नेव्याशी अने अव्याशी, ए चार सत्तास्थानक होय. हवे संवेध देखाडे . अहावीशने बंधे पांचे उदये बाणु अने अव्याशी, ए बे सत्ता होय. तिहां आहारकें बाणुनीज सत्ता होय अने जिननाम सत्तायें उतां अहावीशनो बंध न होय तेमाटे त्र्याणु अने नेव्याशी, एबे सत्ता जंगणत्रीशने बंधे पांचे उदयस्थानकें प्रत्येकें होय, जेजणी उंगणत्रीशनो बंध जिननाम बांधतांज होय. एम सर्व थ वीश सत्तास्थानक प्रमतें होय. हवे अप्रमतें बंधादिक सत्ता संवेध कहे . अप्रमत्त साधुने अहावीश, जंगणत्रीश, त्रीश, एकत्रीश, ए चार बंधस्थानक होय, तिहां प्रथमनां बे तो प्रमत्तनी पेरें नाववां तथा आहारकछिक सहित बांधतां अनुक्रमे त्रीश, एकत्रीशनो बंध होय. ए चार बंधस्थानकें प्रत्येकें एकेको नांगो करतां चार बंध नांगा थाय, केमके अहीं अस्थिर, अशुज, अयशनो बंध अप्रमतें नथी माटे. तथा प्रत्येक बंधस्थानकें जंगणत्रीश अने त्रीश, ए बे बे उदयस्थानक होय. तिहां जे प्रमत्त थको वैक्रिय तथा थाहारक थारंजी अप्रमतें आवे तेने उद्योतने उदयें उगणत्रीशनो उदय होय. तथा त्रीशनो उदय सहज होय, तिहां प्रत्येक उदयें एक नांगो वैक्रियनो तथा थाहारकनो, एवं बे उदय बे नांगा तथा सहज शरीरें अप्रमत्तने त्रीशने उदयें पूर्वे देशविरतिस्थाने ( १४६ ) नांगा कह्या, ते होय. सर्व मली एकेका बंधे उदय नांगा (१४७) होय. शरवाले चार बंधना मलीने (एए) उदय नांगा होय. तिहां १०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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